Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : ७ :
• प्र व च न स र •
वीतरागचारित्रना फळस्वरूप अतीन्द्रिय ज्ञान अने
अतीन्द्रिय सुख–तेना दिव्य महिमानी मंगलवीणा
आचार्यदेव विदेहक्षेत्रमां गया...अतीन्द्रिय ज्ञान अने
अतीन्द्रिय सुखरूप परिणमेला तीर्थंकरदेवने अने केटलाय केवळी
भगवंतोने नजरे नीहाळ्‌या, शुद्धोपयोगरूपे परिणमी–परिणमीने
केवळज्ञानने साधी रहेला गणधरादि वीतराग सन्तोना टोळांने
नजरे देख्या, पोताना आत्मामांय एवा शुद्धोपयोगनी धारा
वहेती हती; अने वळी
कारध्वनिरूप जिनप्रवचनमां
अतीन्द्रिय ज्ञान–सुखनुं साक्षात् श्रवण कर्युं ....ए बधायनो धोध
आचार्यदेवे आ प्रवचनसारमां रेड्यो....अने तेना द्वारा जाणे के
भरतना जीवोने अतीन्द्रिय ज्ञान ने अतीन्द्रिय आनंदनी ज भेट
आपी. आजे पू. गुरुदेव कुंदकुंदस्वामीनी ए महान भेट
आपणने आपी रह्या छे.....अतीन्द्रियज्ञान–आनंदरसना घूंटडा
पीवडावी रह्या छे....लीजीये....चैतन्यरस पीजीये.
[प्रवचन शरू वीर सं. २४९४ भाद्र सुद ११]
पंचपरमेष्ठीने प्रणमनपूर्वक प्रवचनसारनो प्रारंभ थाय छे.
भगवाननी दिव्यवाणीरूप जे प्रवचन, तेनो सार शुं? ते आ प्रवचनमां
कुंदकुंदाचार्यदेवे बताव्युं छे; तेओ विदेहक्षेत्रे जईने सीमंधर परमात्मानी साक्षात्
वाणी सांभळी आव्या हता; तेनो सार आमां रच्यो छे. एवुं आ प्रवचनसार आजे
शरू थाय छे.
अमृतचंद्राचार्यदेवे तत्त्वप्रदीपिका नामनी टीका रची छे–जे दीपकनी माफक
तत्त्वोनुं स्वरूप प्रकाशे छे. तेओ टीकाना मंगलाचरणमां ज्ञानानंदस्वरूप उत्कृष्ट
आत्माने नमस्कार करे छे. ते आत्मा केवो छे? के स्वानुभवप्रसिद्ध छे. आवा