Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
टीकाकार अमृतचंद्राचार्य देव पोते महा समर्थ मुनि छे, त्रण कषायना अभावरूप
शुद्धता तो तेमने प्रगटी ज छे, मात्र जराक संज्वलन कषाय बाकी छे; तेनो पण नाश
थईने परम विशुद्धि एटले वीतरागता ने केवळज्ञान थाओ–एवी भावनाथी कहे छे के
अहो! आ समयसारनी व्याख्याथी, एटले के तेमां कहेला वाच्यरूप शुद्धआत्माना
घोलनथी मारी अनुभूति परम शुद्ध थई जशे. हुं शुद्ध चिन्मात्र छुं–एवा मारा
स्वभावना घोलनथी परिणति पूर्णानंदरूप शुद्ध थई जशे. आम कहीने समयसारना
घोलननुं फळ पण बताव्युं; पर्यायमां अशुद्धता बाकी छे तेनो पण स्वीकार कर्यो, ते
टाळीने पूर्ण शुद्धतानो उपाय पण बताव्यो; शुद्ध चिन्मात्र आत्मस्वभावनुं घोलन
करवारूप शास्त्रतात्पर्य पण बताव्युं. आ शास्त्र सांभळीने शुं करवुं? के शुद्ध चिन्मात्र
आत्मानुं घोलन करवुं. विकल्पनुं के रागनुं घोलन न करवुं, तेना लक्षे न अटकवुं. पण
लक्षने वाच्यरूप शुद्ध आत्मामां जोडीने तेनुं घोलन करवुं. एम करवाथी ज साधकदशा
प्रगटे छे, ने वधीने पूर्ण थाय छे.
अहा, मुनिराजने घणी शुद्धता तो थई छे, पण हजी जराक कषायकणथी
परिणतिमां मलिनता छे ते पालवती नथी, तेथी तेनो नाश करीने पूर्ण शुद्धतानी
भावना छे; ने ते पूर्ण शुद्धता मारा शुद्धचिन्मात्र स्वभावना घोलनथी ज थशे–एवुं
भान छे. विकल्पनो तो नाश करवा मागे छे, तो ते शुद्धतानुं साधन केम थाय? शुद्धतानुं
साधन विकल्प न थाय; शुद्धस्वभावनुं घोलन ज शुद्धतानुं साधन थाय.
अहा, आ तो ‘समयसार’ छे,–एकलुं शुद्धात्मानुं घोलन छे.....पदेपदे–पर्याये–
पर्याय शुद्धआत्मा घूंटाय छे. शुद्ध आत्माने जाणतां ज साचुं ज्ञान ने सुख थाय छे. सुख
तो आत्मामां छे, तेनी सन्मुख थईने तेने जाणतां सुख अनुभवाय छे; बीजो कोई
सुखनो रस्तो नथी. शुद्ध आत्माना लक्षे आ समयसारना श्रवणनुं फळ उत्तम सुख छे.
छेल्ले आचार्य देव कहेशे के–
आ समयप्राभृत पठन करीने अर्थ–तत्त्वथी जाणीने;
ठरशे अरथमां आत्मा जे सौख्य उत्तम ते थशे.
आवा आ महान शास्त्रनो प्रारंभ करतां उत्कृष्ट मंगळरूपे अनंता
सिद्धभगवंतोने आत्मामां स्थापीने, सिद्धसमान शुद्धात्माने ध्येय बनावे छे. अनंत
सिद्धभगवंतोने आत्मामां बोलावीने आराधकभावनी झणझणाटी. बोलावतुं, पहेली
गाथा उपरनुं अपूर्व भावभीनुं प्रवचन आ अंकमां सरत्तमां पाने वांचो.