अमृतचंद्राचार्ये ओळखी लीधी छे. तेओ कहे छे के अहो! संसारसमुद्रनो किनारो तेमने
संतनी दशाने बीजा भावलिंगीसंत ओळखी ल्ये छे; पोताना ज्ञाननी विशेष
निर्मळताने पण ओळखी ल्ये छे. आत्मानी निर्मळ ज्ञानज्योत रागथी तद्न जुदी छे.
प्रगटी हती–एम तेमना वचन उपरथी जाणी लीधुं छे. समस्त एकान्तवादनी विद्यानो
अभिनिवेश जेमने छूटी गयो छे, एटले अज्ञाननो व्यय थयो छे,–ने शेनी उत्पत्ति थई
अत्यंत मध्यस्थ थया छे, बधा पुरुषार्थमां सारभूत अने आत्माने उत्कृष्ट हितरूप एवी
मोक्षलक्ष्मीने ज जेमणे उपादेय करी छे; वच्चे सरागचारित्रना फळमां स्वर्गवैभव
शुद्धोपयोगने अने तेना फळरूप मोक्षने ज उपादेयरूपे स्वीकार्युं छे. मोक्ष एटले
अतीन्द्रिय पूर्ण ज्ञान ने पूर्णसुख–ते ज आत्माने परम हितरूप छे. अने एवी मोक्षदशा
पोतामां मोक्षमार्ग प्रगट कर्यो, त्यारे पंचपरमेष्ठी भगवंतोनी प्रसन्नता थई–एम
भक्तिथी कहेवाय छे, केमके मोक्षमार्ग प्रगट करवामां पंचपरमेष्ठी ज निमित्त होय छे,
परम भक्तिने लीधे, तेमना प्रसादथी ज मोक्ष ऊपजे छे–एम कहेवामां आवे छे. आवी
मोक्षलक्ष्मीने ज आचार्यदेवे उपादेयपणे नक्क्ी करी छे.
फळमां स्वर्गनो वैभव मळे त्यां पण जीव आकुळताथी दुःखी ज छे, एम आगळ बतावशे.
दशामां जीवने आवा आत्मस्वरूप पामेला पंचपरमेष्ठी ज निमित्तरूपे होय, एनाथी
उत्पत्ति भगवंत पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी थाय छे. वीतरागभावरूपे परिणमेला जीवो ज
वीतरागी मोक्षमार्गना निमित्त थाय छे.