Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : ९ :
हवे पांचा गाथा शरू करतां पहेलांं अमृतचंद्राचार्यदेव उपोद्घातमां शास्त्रकार
कुंदकुंदाचार्यदेवनी ओळखाण तथा महिमा प्रगट करे छे: जुओ कुंदकुंदस्वामी तो हजार
वर्ष पहेलांं थई गयेला छे, छतां हजार वर्ष पछी पण तेमनी अंतरंगदशाने
अमृतचंद्राचार्ये ओळखी लीधी छे. तेओ कहे छे के अहो! संसारसमुद्रनो किनारो तेमने
अत्यंत निकट छे; जेमने सातिशय ज्ञानज्योति प्रगट थई छे. जुओ, एक भावलिंगी
संतनी दशाने बीजा भावलिंगीसंत ओळखी ल्ये छे; पोताना ज्ञाननी विशेष
निर्मळताने पण ओळखी ल्ये छे. आत्मानी निर्मळ ज्ञानज्योत रागथी तद्न जुदी छे.
आवी ज्ञानज्योत पोताने पण प्रगटी छे, ने कुंदकुंदाचार्यदेवने पण हजार वर्ष पहेलांं
प्रगटी हती–एम तेमना वचन उपरथी जाणी लीधुं छे. समस्त एकान्तवादनी विद्यानो
अभिनिवेश जेमने छूटी गयो छे, एटले अज्ञाननो व्यय थयो छे,–ने शेनी उत्पत्ति थई
छे? के पारमेश्वरी अनेकान्तविद्या जेमने प्रगटी छे; जेओ चारित्रदशा प्रगट करीने
अत्यंत मध्यस्थ थया छे, बधा पुरुषार्थमां सारभूत अने आत्माने उत्कृष्ट हितरूप एवी
मोक्षलक्ष्मीने ज जेमणे उपादेय करी छे; वच्चे सरागचारित्रना फळमां स्वर्गवैभव
आवशे खरो पण तेने उपादेय नथी कर्यो, तेने तो अनिष्टफळ जाणीने हेय कर्यो छे,
शुद्धोपयोगने अने तेना फळरूप मोक्षने ज उपादेयरूपे स्वीकार्युं छे. मोक्ष एटले
अतीन्द्रिय पूर्ण ज्ञान ने पूर्णसुख–ते ज आत्माने परम हितरूप छे. अने एवी मोक्षदशा
भगवंत पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी ऊपजे छे. पंचपरमेष्ठीनो उपदेश झीलीने पोते
पोतामां मोक्षमार्ग प्रगट कर्यो, त्यारे पंचपरमेष्ठी भगवंतोनी प्रसन्नता थई–एम
भक्तिथी कहेवाय छे, केमके मोक्षमार्ग प्रगट करवामां पंचपरमेष्ठी ज निमित्त होय छे,
विपरीत निमित्त होतुं नथी. आम यथार्थ निमित्तनुं ज्ञान कराववा, तेमना प्रत्येनी
परम भक्तिने लीधे, तेमना प्रसादथी ज मोक्ष ऊपजे छे–एम कहेवामां आवे छे. आवी
मोक्षलक्ष्मीने ज आचार्यदेवे उपादेयपणे नक्क्ी करी छे.
वीतरागभावरूप जे मोक्षपुरुषार्थ ते ज साररूप छे; शुभरागनो पुरुषार्थ साररूप
नथी, उपादेय नथी; वीतरागभावना फळरूप मोक्षलक्ष्मी ते ज उपादेय छे. शुभरागना
फळमां स्वर्गनो वैभव मळे त्यां पण जीव आकुळताथी दुःखी ज छे, एम आगळ बतावशे.
जेणे आवी विवेकज्योति प्रगट करीने मोक्षनो पुरुषार्थ कर्यो तेना उपर भगवंत
पंचपरमेष्ठीनी कृपा थई, परमेष्ठी भगवंतो तेना उपर प्रसन्न थया. एटले के साधक
दशामां जीवने आवा आत्मस्वरूप पामेला पंचपरमेष्ठी ज निमित्तरूपे होय, एनाथी
विरुद्ध निमित्त न होय. तेथी यथार्थ निमित्तनी प्रसिद्धि करवा कह्युं के मोक्षलक्ष्मीनी
उत्पत्ति भगवंत पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी थाय छे. वीतरागभावरूपे परिणमेला जीवो ज
वीतरागी मोक्षमार्गना निमित्त थाय छे.