: १० : आत्मधर्म : आसो : २४९८
समयसारनी पांचमी गाथामां पण निज–आत्माना वैभवनुं वर्णन करतां आचर्यदेव
कहे छे के भगवान सर्वज्ञदेवथी मांडीने अमारा गुरुपर्यंत जे परापर गुरुओ–तेमणे
अनुग्रहपूर्वक अमने जे शुद्धात्मानो उपदेश आप्यो तेना वडे अमने निजवैभवनी प्राप्ति
थई छे. पोताने जे निजवैभव प्रगट्यो तेमां निमित्त कोण छे तेनी प्रसिद्धि करीने
विनय कर्यो छे.
जेम गतिक्रियामां धर्मास्ति ज निमित्त होय, तेम वीतरागी मोक्षमार्गमां गमन
करवामां वीतरागी–पंचपरमेष्ठी भगवंतो भगवंतो ज निमित्त होय. आचार्यदेव कहे छे
के पंचमरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार करीने, तेमना प्रसादथी में साक्षात् मोक्षमार्ग
अंगीकार कर्यो छे. हुं मोक्षमार्गनो आश्रय करुं छुं, एटले के शुद्धात्मामां एकाग्र थतां
मोक्षमार्ग पर्याय प्रगटी जाय छे तेने मोक्षमार्गनो आश्रय कर्यो–एम कहेवाय छे.
आवी दशावाळा आचार्यदेव आ प्रवचनसारना प्रारंभमां तीर्थनायक महावीर
भगवान वगेरे पंचपरमेष्ठी भगवंतोने उत्कृष्ट भक्तिपूर्वक नमस्कार करे छे,–जाणे
पंचपरमेष्ठी भगवंतो पोतानी सन्मुख साक्षात् बिराजता होय तेम तेमने नमस्कार करे
छे, अने वीतराग–शुद्धोपयोगरूप चारित्र अंगीकार करवानी प्रतिज्ञा करे छे.
(गाथा १ थी प)
पंचपरमेष्ठीने वंदन करतां ते पंचपरमेष्ठीनुं स्वरूप तो ओळखे छे ने साथे
पोतानुं परमार्थस्वरूप केवुं छे ते पण ओळखे छे. नमस्कार करनार हुं केवो छुं? के
स्वसंवेदनथी प्रत्यक्ष ज्ञानदर्शनस्वरूप छुं. देहनी क्रियारूप हुं नथी, वंदनना रागनो
विकल्प ऊठ्यो ते विकल्पस्वरूप हुं नथी, हुं तो ज्ञानदर्शनस्वरूप छुं, ने मारा आवा
आत्माने में स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष कर्यो छे.
आवो स्वसंवेदनप्रत्यक्ष हुं, प्रथम तो श्री वर्द्धमानदेवने नमस्कार करुं छुं–केमके
तेओ प्रवर्तमान तीर्थना नायक छे; वळी केवा छे भगवान वर्धमानदेव? सुरेन्द्रो, नरेन्द्रो
ने असुरेन्द्रोथी वंदित छे तेथी त्रणलोकना एक सर्वोत्कृष्ट गुरु छे. ऊर्ध्वलोकना सुरेन्द्रो,
मध्यलोकना नरेन्द्रो ने अधोलोकमां भवनवासी वगेरे असुरेन्द्रो एम त्रण लोकना
जीवोथी भगवान वंदनीय छे. कोईक मिथ्याद्रष्टि जीवो न माने तेनी गणतरी नथी केमके
त्रण लोकना ईन्द्र वगेरे मुख्य जीवो भगवानने वंदे छे, तेथी त्रणे लोकथी भगवान
वंदनीय छे.
वळी भगवाने घातिकर्मने धोई नाख्या छे तेथी सर्वज्ञता प्रगटी छे,
अनंतशक्तिरूप परमेश्वरता प्रगटी छे; भगवानने प्रगटेली अनंतशक्तिरूप परमेश्वरना
जगत उपर अनुग्रह करवामां समर्थ छे. भगवाननी वाणीनी वात अहीं न लीधी, पण
सीधी भगवानना आत्मानी वात लीधी; भगवानना आत्माने प्रगटेली
अनंतशक्तिरूप परमेश्वरना जगत उपर उपकार करवा समर्थ छे एटले ते परमेश्वरताने
जे समजे