Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : ११ :
तेने तेवी परमेश्वरता प्रगटे, अने तेमां भगवाननो उपकार छे. भगवान तो
त्रणेलोकना जीवोने अनुग्रह करवा समर्थ छे,–पछी सामो जीव कोई न समजे तो ते
तेनो दोष छे, अहीं तो कहे छे. के अहो, अमारा उपर तो भगवाननो महान अनुग्रह
छे; अमे स्वसंवेदनथी आत्माने प्रत्यक्ष कर्यो, ने भगवाने तेम करवानुं ज कह्युं हतुं तेथी
भगवाननो अमारा उपर परम अनुग्रह थयो, आवो अनुग्रह करनारा भगवानने
नमस्कार करुं छुं.
भगवान पोते तीर्थस्वरूप होवाथी योगीओने तारवाने समर्थ छे. भगवान
पोते भवथी तर्या छे ने जे योगीओ जिनस्वरूपमां उपयोगने जोडीने भवथी तरी रह्या
छे तेमने तारवाने भगवान समर्थ छे. स्तुतिकार कहे छे के हे भगवान! तरवानो उपाय
तो अमे करीए ने तमे अमने तारनारा कहेवाओ–तेमां तो शुं नवाई! परंतु अमारा
पुरुषार्थ कर्यां वगर तमे अमने तारी द्यो–तो तारनारा खरा! अमे पुरुषार्थ करीए ने
अमे तरीए–तेमां शुं आश्चर्य!–एटले के भगवानने तारनारा कहेवा ते तो निमित्तनुं
कथन छे. पोताना स्वरूपमां उपयोगने जोडे तेने माटे भगवान तारनारा छे. पण जे
पोतानो उपयोग निजस्वरूपमां जोडतो नथी ते पोते तरतो नथी, ने निमित्तपणेय
भगवान तेने तारनारा कहेवाता नथी; भगवानने ते ओळखतोय नथी. अहीं तो
भगवाननी ओळखाणपूर्वकना नमस्कारनी वात छे,–तेमां पोतानी ओळखाण पण
भेगी ज छे. सौथी पहेलांं ज ‘स्वसंवेदनप्रत्यक्ष एवो हुं’ एम पोताना आत्माने
पंचपरमेष्ठीनी नातमां भेळवीने शरूआत करी छे.
वळी भगवान केवा छे? के धर्मकर्ता छे; धर्म एटले शुद्ध स्वरूपपरिणति–तेना
कर्ता छे. पोताना आत्मानी शुद्धपरिणतिना कर्ता छे; ने बीजा जीवोने पण तेवी
शुद्धपरिणतिरूप धर्मनो उपदेश दीधो छे. ते भगवान परम भट्टारक छे, केवळज्ञानरूपी
सूर्यनुं तेज जेमने खीली गयुं छे, ते केवळी भगवानने भट्टारक कहेवाय छे. वळी
भगवान वर्द्धमान महा देवाधिदेव छे, परमेश्वर छे, परमपूज्य छे; अने तेमनुं
नामग्रहण पण सारुं छे. ‘वर्द्धमान’ एवुं खास नाम लईने कुंदकुंदाचार्यदेवे नमस्कार
कर्यां छे. अहो, भगवाननुं नामग्रहण पण सारूं छे–पण अंदर भावभासन सहितनी
वात छे. आ रीते भगवानने ओळखीने, वर्तमान तीर्थना नायक श्री वर्द्धमानदेवने
नमस्कार करुं छुं.
त्यारपछी, भूतकाळमां थयेला सर्व तीर्थंकरोने तथा सिद्धोने ज्ञानमां लईने
नमस्कार कररुं छुं– –केवा छे ते तीर्थंकरो अने सिद्धो?–के शुद्ध दर्शनज्ञानस्वभावने
पामेला छे. जुओ, पोते पण दर्शनज्ञानस्वभावरूप छे एवुं स्वसंवेदन कर्युं छे अने जेने
नमस्कार करुं छुं तेओ पण शुद्ध दर्शनज्ञानस्वरूप छे–एम ओळखाण करीने नमस्कार
कर्यां छे. वळी परमशुद्धउपयोगभूमिका जेमणे प्राप्त करी छे एवा आचार्य