Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
उपाध्याय–साधु सर्वे श्रमणोने पण नमस्कार करुं छुं. ते मुनिवरो ज्ञानाचार–दर्शनाचार–
चारित्राचार वगेरे पांच आचारयुक्त छे; ने तेमणे परम शुद्धउपयोग प्रगट कर्यो छे.
जुओ, मोक्ष साधक जैनमुनि केवा होय ते पण ओळखाव्युं.–मुनि तेने कहेवाय के जेणे
शुद्धउपयोगभूमिका प्राप्त करी होय.–आ रीते पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करनारनी एटली
जवाबदारी छे के शद्धोपयोगने अने रागने भिन्न–भिन्न ओळखे. रागनो जे आदर
करशे ते पंचपरमेष्ठीने साचा नमस्कार नहि करी शके. अहीं तो शास्त्रकार आचार्य पोते
शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला छे; पोते पंचपरमेष्ठीनी पंक्तिमां बेसीने पंचपरमेष्ठी
भगवंतोने उत्कृष्ट नमस्कार कर्यां छे.
वळी विशेष कहे छे के, फरीफरीने आ ज पंचपरमेष्ठीने, जाणे के तेओ मारी
सन्मुख साक्षात् हाजर बिराजता होय एम परमभक्तिथी चिंतवीने सर्वेने एकाथे तेम
ज एकेकने नमस्कार करुं छुं, तेमनी आराधना करुं छुं. जेम विदेहक्षेत्रे सीमंधरादि
तीर्थंकरो साक्षात् बिराजे छे तेम बधाय पंचपरमेष्ठी भगवंतोने मारा ज्ञानमां
साक्षात्रूप करीने तेमने अभेद नमस्कार करुं छुं.
वंदन करनार हुं केवो छुं? ने वंदन करवा योग्य पंचपरमेष्ठी भगवंतो केवा छे?–
एम बंनेनी ओळखाणपूर्वकना आ नमस्कार छे.
जगतमां सर्वज्ञ सदाय होय ज छे. अरिहंतपणे तीर्थंकर सर्वज्ञदेव पण सदाय
विद्यमान होय ज छे. भरतक्षेत्रमां जन्मेला तीर्थंकरनो भले अत्यारे अभाव छे. पण
विदेहक्षेत्रमां साक्षात् तीर्थंकरो अत्यारे बिराजे छे, ने ते तीर्थंकरो पोताना ज्ञानमां
साक्षात्नी माफक तरवरे छे; तेथी आचार्यदेव कहे छे के अमारा ज्ञानमां तीर्थंकरोनो
सद्भाव छे. जेवा सीमंधरादि तीर्थंकर भगवंतो साक्षात् वर्तमानमां बिराजे छे तेवा ज
साक्षात् पंचपरमेष्ठी भगवंतो पण जाणे वर्तमान मारी सन्मुख ज बिराजता होय–एम
परम भक्तिने लीधे तेमने वर्तमानकाळगोचर करीने आराधुं छुं–सन्मान करुं छुं–मारा
मोक्षलक्ष्मीना स्वयंवर–मंडपमां तेमने बोलावुं छं.
स्वयंवर–मंपड एटले शुद्धउपयोग अर्थात् परम तिर्ग्रंथतानी दीक्षाना उत्सवनो
आनंदप्रसंग, तेमां मंगलाचरणरूपे पंचपरमेष्ठी भगवंतोने हाजर राखुं छुं.
मोक्षलक्ष्मीने साधवा जतां पंचपरमेष्ठी जवा श्रेष्ठने साथे राख्या, हवे ते मोक्षनी
प्राप्तिमां वच्चे विध्न नहीं आवे. अहो, आ तो मोक्षने साधवानो आनंदमय प्रसंग छे;
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकतारूप एकाग्रता प्रटग करवानो आ उत्तम अवसर छे;
तेमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने हुं सन्मानुं छुं...परमभक्तिथी तेमने नमस्कार करुं छुं. कई
रीते? के मारा आत्माने स्वानुभवप्रत्यक्षरूप करीने नमस्कार करुं छुं.
विकल्प अने वाणी ए बंनेथी भिन्न ज्ञानदर्शनस्वरूप आत्मा छे, तेने स्व