: आसो : २४९८ आत्मधर्म : १३ :
संवेदनप्रत्यक्ष कर्यो छे, विकल्पनुं ने वाणीनुं कर्तृत्व ज्ञानमां रह्युं नथी. आवा
पोताना तेम ज पंचपरमेष्ठीना आत्मानुं स्वरूप ओळखीने नमस्कार कर्यां छे.
नमस्कारनो विकल्प ऊठ्यो छे तेनाथी पण पोताने भिन्न जाणे छे, ने अंदर आत्मानी
शुद्धता थती जाय छे, एनुं नाम भावनमस्कार छे. आवा नमस्कार करीने ते
पंचपरमेष्ठी भगवंतोना आश्रमने पामीने हुं सम्यग्दर्शन–ज्ञानसम्पन्न थयो छुं. जुओ,
पोताना आत्मामां सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थयुं तेनी निःशंक खबर पडे छे. आवा
सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञानपूर्वक ज शुद्धोपयोगी चारित्रदशा होय छे. मुनिओने पण
शुद्धोपयोगरूप जे वीतरागचारित्र छे जे ते मोक्षनुं कारण छे; शुभराग रही जाय तेटलुं
पुण्यबंधनुं कारण छे, ते मोक्षनुं कारण नथी. माटे आचार्यदेव कहे छे के पुण्यबंधना
कारणरूप एवा ते रागने ओळंगी जईने हुं वीतरागचारित्रने प्राप्त करुं छुं.
छठ्ठा गुणस्थाने चारित्रदशा तो छे, पण त्यां जे शुभविकल्पनो सद्भाव छे
तेटलो कषायकण विद्यमान छे, तेने पण छोडीने शुद्धोपयोगरूप वीतराग चारित्र प्रगट
करवानी आ वात छे. अहा, कुंदकुंदाचार्य जेवा सन्त कहे छे के पुण्यना कारणरूप एवुं
सरागचारित्र, ते वच्चे आवी पड्युं होवा छतां तेने ओळंगीने, मोक्षना कारणरूप एवा
वीतरागचारित्रने हुं प्राप्त करुं छुं, एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकतारूप
एकाग्रताने हुं अवलंबुं छुं.–आवो साक्षात् मोक्षमार्ग छे.
शुभराग तो पुण्यबंधनुं कारण छे, ते मोक्षनुं कारण नथी. तेने तो आचार्यदेवे
कलंक अने कलेशरूप कहीने छोडवा योग्य कह्युं छे. अने मोक्षनुं कारण तो वीतराग
चारित्र छे,–तेने प्राप्त करवायोग्य कह्युं छे. आनाथी जे विरुद्ध माने ते ‘प्रवचन’ने
एटले के जिनवाणीने समज्यो नथी; तेने सम्यग्दर्शन–ज्ञान होतुं नथी.
पंचपरमेष्ठी भगवंतोनो आश्रम विशुद्धज्ञानदर्शनप्रधान छे, एटले ते आश्रममां
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान प्राप्त थाय छे. ए रीते पंचपरमेष्ठीना आश्रममां
सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान प्राप्त करीन पछी रागना अभावरूप वीतरागचारित्रदशाने
हुं प्रगट करुं छुं. जुओ, प्रवचनसारनी शरूआतथी ज शुभरागने हेयरूप ने
वीतरागभावने ज उपादेयरूप बताव्यो छे. ते शुभराग वच्चे आवशे पण ते मोक्षनुं
साधन नथी माटे तेने हेयरूप जाणजे. रागने मोक्षनुं कारण माने तेने तो श्रद्धा–ज्ञान
पण साचां नथी.
अहो, निर्ग्रंथ साधुपणारूप जे मोक्षमार्ग, तेमां प्रथम तो शुद्धात्मतत्त्वना श्रद्धा–
ज्ञानरूप सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान होय छे; सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञानपूर्वक
चैतन्यतत्त्वमां एकाग्र थतां वीतरागचारित्र प्रगटे छे. आवा श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनी
एकतारूप मोक्षमार्ग ते वीतरागभावरूप छे. वच्चे छठ्ठा गुणस्थाने शुभरागरूप कषाय
कण वर्ते छे ते तो बंधनुं कारण छे, ते कांई मोक्षनुं साधन नथी.