Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 49

background image
: १४ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
अहीं साक्षात् मोक्षमार्ग लेवो छे एटले वीतरागचारित्रनी वात लीधी; बाकी तो
चोथा–पांचमा वगेरे गुणस्थाने पण जे रागरहित भाव प्रगट्यो छे ते ज धर्म छे, ने जे
राग छे ते धर्म नथी, पहेलेथी ज आ रीते अने धर्मनी भिन्नतारूप वहेंचणी करतां जेने
न आवडे, ने जे रागने धर्म माने तेने तो धर्मनी शरूआत पण थती नथी, श्रद्धा ज
ज्यां खोटी छे त्यां चारित्र केवुं?
अहो, आ तो सर्वज्ञपरमेश्वरो ने पंचपरमेष्ठी भगवंतो जे मार्गे गय, ते मार्गमां
भळवानी वात छे. भाई, आ तो वीतरागी परमेश्वरोनो वीतरागमार्ग छे. जगतपूज्य
एवुं परमेष्ठीपद रागवडे नथी प्रगटतुं, ए तो वीतरागतावडे प्रगटे छे. आवी दशाने
ओळखीने तेनो ज आदर करवा जेवुं छे.
मुनिदशामां सरागचारित्र ने वीतरागचारित्र बंने होय छे पण, आचार्यदेव कहे
छे के, तेमांथी सरागचारित्रने हुं अंगीकार नथी करतो केमके ते तो कषायवाळुं छे,
पुण्यबंधनुं कारण छे; तेथी तेने तो हुं ओळंगी जाउं छुं; तेने छोडीने मोक्षना कारणरूप
वीतरागचारित्रने ज हुं अंगीकार करुं छुं. आवी प्रतिज्ञावडे त्यारे तेमणे साक्षात्
मोक्षमार्गने अंगीकार कर्यो. जुओ तो खरा, हजार वर्ष पहेलांंना मुनिराजने साक्षात्
निर्विकल्पदशा थई–एनो निर्णय हजार वर्ष पछीना मुनिराजे करी लीधो. मुनिओनी
दशा अलौकिक होय छे. आवो साक्षात् वीतराग मोक्षमार्ग आ काळे पण होय छे.
सातमा गुणस्थाननी आ वात छे; ने आ काळे पण भरतक्षेत्रना जीवने सातमा
गुणस्थाननी दशा प्रगटी शके छे. आवी दशा कुंदकुंदाचार्यदेवने हती–एम
अमृतचंद्राचार्यदेवे प्रसिद्ध कर्युं छे.
अहो, आवी मुनिदशानी पळ धन्य छे....आवी वीतरागदशामां आत्मा झुलतो
होय–ए तो जाणे हालता–चालता सिद्ध! मिथ्याद्रष्टिने चलतुंफिरतुं शब कह्युं छे, ने
मोक्षमार्गी मुनिराज ए चालताफरता सिद्ध छे. मुनिदशा ए तो जगतपूज्य परमेष्ठीपद छे.
(प्रवचनसारना विशेष प्रवचन माटे जुओ पानुं : २४)
स्वानुभव ए मूळ वस्तु छे. वस्तुस्वरूपनो यथार्थ निर्णय करी,
मति–श्रुतज्ञानने अंतरमां वाळीने स्वद्रव्यमां परिणामने एकाग्र करतां
सम्यग्दर्शन अने स्वानुभव थाय छे. आवो अनुभव करे त्यारे ज मोहनी
गांठ तूटे छे, ने त्यारे ज जीव भगवानना मार्गमां आवे छे.