Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 49

background image
: आसो : २४९८ आत्मधर्म : १५ :
अमेरिकाथी आवेल बे प्रश्नना जवाब
[“आजना शिक्षित युवानो धर्ममां रस नथी लेता”
एवी भ्रमणा भांगवा माटे दीपकभाईनो पत्र एक वधु
पुरावो छे....युवानो पण धर्ममां उत्साहथी रस ल्ये छे.
]
अमेरिकाथी आपणा सभ्य नं. १९प२ दीपक एम. जैन जिज्ञासाथी बे प्रश्न पूछावे
छे. अमेरिका जेवा दूर देशमां रहीने पण सोनगढना सन्तोने याद करवा, साथे साथे
आत्मा अने परमात्माना विचारो करवा, ने न समजाय ते वात जिज्ञासाथी भारत
पूछाववी,–आ रीते आपणी भारतभूमिना सन्तानो गमे त्यां जाय पण एना हृदयमां
सर्वत्र अध्यात्मसंस्कारो जीवंत रहे छे;–बीजा कोई पण देशनी संस्कृति आपणा भारतनी
अध्यात्म–संस्कृतिनी तुलना करी शके तेम नथी. भारतनी आ अध्यात्म–संपत्तिनुं गौरव
भारतनो दरेक पुत्र समजे....ने एना उच्च संस्कारोथी पोतानुं जीवन उज्वळ बनावे एम
ईच्छीए. हवे अमेरिकाथी दीपक भाईए पूछेला बे प्रश्नोना जवाब–
(१) जो जीव अमर छे तो जुदा जुदा अवतार केवी रीते ले छे? अने
मनुष्यपणुं, पशुपणुं वगेरे जींदगी केवी रीते नककी थाय छे?
उत्तर :–भाईश्री, प्रथम तो ए संतोषनी वात छे के तमारो प्रश्न ‘आत्मानी
आस्तिकता’ मांथी ऊगेलो छे. देहथी जुदुं एवुं कंईक जीवतत्त्व छे अने ते अमर छे–
एवा जे थोडाघणा संस्कारो अंतरमां ऊंडेऊंडे पड्या छे तेमांथी ज आवी जिज्ञासा ऊगे
छे. आटला उपोद्घात पछी हवे तमारो उत्तर : तमे पूछेली वात समजाववा माटे
शास्त्रमां देह अने वस्त्रनो दाखलो आप्यो छे.–जेम एक ज शरीर कायम (एटले के
जीवनपर्यन्त) रहेतुं होवा छतां वस्त्रो बदलाया करे छे; वस्त्रो बदलतां कांई माणस
नथी बदली जतो. दीपकभाई भारतमां होय त्यारे कदाच धोतीझब्बो पहेरे, ने
अमेरिकामां होय त्यारे पेन्टशर्ट पहेरे–तो तेथी कांई दीपकभाई बदली नथी जता; तेम
जीव संसारनी जुदीजुदी गतिमां जुदाजुदा खोळिया (शरीररूपी वस्त्र) धारण करे,
क्यारेक हाथीनुं शरीर धारण करे ने क्यारेक मनुष्य वगेरेनुं शरीर धारण करे, पण तेथी
कांई जीव बदलीने बीजो नथी थई जतो एक शरीर छूटी जाय (मरण थाय) एटले ते
ज जीव बीजा शरीरमां जाय छे, तेथी तेनुं अमरपणुं तो रहे ज छे. शरीरो बदलवा छतां
आत्मा बदली जतो नथी, के मरी जतो नथी, ते एम सूचवे छे के आत्मा देहथी जुदी
जातनो पदार्थ छे–के जे देहनो नाश थवा छतां पोते नाश पामतो नथी.–जेम वस्त्रनो
नाश थवाथी कांई वस्त्र पहेरनारनो नाश थई जतो नथी. एम जुदाजुदा शरीरो छे ते
तो जीवना उपरना वस्त्रो समान छे;