Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
जीव तो ते शरीरथी जुदी जातनो चेतनमय कायमी पदार्थ छे.
जीव पोते जेवा पापनां के पुण्यनां भाव करे ते अनुसार ते शरीरने धारण करे
छे...अने स्वर्ग (देवलोक), नरक, तिर्यंच (पशु–पंखी वगेरे) तथा मनुष्य–ए चार
प्रकारनी गतिमां ते अवतार धारण करे छे. पण ज्यारे देहथी भिन्न पोतानुं सत्यस्वरूप
(ज्ञानस्वरूप) ओळखे अने ते स्वरूपमां ज लीन रहे त्यारे जीव मुक्त थाय छे, एटले
पछी तेने कोई शरीर धारण करवानुं रहेतुं नथी–आवी दशाने सिद्धदशा अथवा
मोक्षदशा कहेवाय छे.–तेमां परम सुख छे.
(आ संबंधी विशेष जिज्ञासा जागे ने कांई प्रश्न ऊठे तो आप खुशीथी
पूछावशो; केमके आ आपणा जैनधर्मनी मूळभूत संस्कृति छे...ने तेनी समजण जीवने
महान हितरूप छे.)
(२) तमारो बीजो प्रश्न छे के–जो मनुष्यो तेमज बीजा प्राणीओ ए बधाना
आत्मा सरखा होय तो तेओ बधा परमात्मा थई शके के नहीं?
उत्तरमां श्रीमद्राजचंद्रनी भाषामां कहीए तो–‘सर्व जीव छे सिद्धमय जे समजे
ते थाय.’ परमात्मा थवानी ताकात तो बधा जीवोमां छे, पण जे पोतानी ते ताकातने
ओळखीने तेने प्रयोगमां (अनुभवमां) लावे ते ज परमात्मा थाय छे, जे पोतानी
ताकातने नथी ओळखता ते परमात्मा नथी थतां. स्थूल द्रष्टांतथी समजावीए तो–जेम
दरेक मनुष्यने करोडपति थवानो अधिकार छे,–पण शुं बधाय मनुष्यो करोडपति थाय
छे? ना; अने छतां, जे करोडपति नथी थता तेमनामां पण करोडपति थवानो अधिकार
तो आपणे स्वीकारीए ज छीए. तेम दरेक जीवमां परमात्मा थवानो अधिकार
(स्वभावनी शक्ति) तो छे. पण बधा जीवो परमात्मा थई जता नथी; जे नथी थता
तेनुं कारण ते जीवो निजस्वरूपने भूलीने मोहमां ने राग–द्वेषमां अटक्या छे.
हवे मनुष्य, पशु वगेरे बधाना आत्मा सरखा होवा छतां तेमां एटली
विशेषता छे के, ‘हुं परमात्मा थई शकुं छुं’ एवी निजशक्तिनुं भान तो मनुष्यनो के
पशुनो (हाथी–सिंह–वांदरो वगेरे बुद्धिशाळी पशुनो) आत्मा पण करी शके छे केमके
तेनामां तेटली बुद्धिनो विकास थयो छे. अने पछी ते ज जीव पोतानो वधु विकास
करीने ज्यारे परमात्मा थवाने तैयार थाय छे त्यारे तेनुं पशुपणुं छूटीने ते
मनुष्यपणामां आवे छे, ने क्रमेक्रमे विकास साधीने वीतराग परमात्मा थाय छे. आ
रीते अत्यार सुधीमां घणाय जीवो परमात्मा थई गया छे. आपणे पण आत्मानी
ओळखाण वडे परमात्मा थई शकीए छीए.
तमारा धर्मप्रेम माटे धन्यवाद.
••• जय जिनेन्द्र