: आसो : २४९८ आत्मधर्म : १७ :
सिद्धना लक्षे शरू थतो साधकभाव
अनंत सिद्धभगवंतोने आत्मामां बोलावीने
आराधकभावनी झणझणाटी बोलावतुं
अपूर्व मंगळाचरण
वंदित्तु सव्वसिद्ध
धुवमचलमणोवमं गईं पत्ते।
वोच्छमि समयपाहुडम्
ईणमो सुयकेवली भणियं।। ९।।
ध्रुव अचल ने अनुपम गति
पामेल सर्वे सिद्धने,
वंदी कहुं श्रुत–केवळी–कथित
आ समयप्राभृत अहो! १.
जुओ, आचार्यदेव समयसारना अपूर्व मंगलाचारणमां अनंत सिद्धभगवंतोने
प्रतीतमां लईने आत्मामां स्थापे छे; सिद्ध जेवा शुद्धात्माने ध्येयरूप बनावीने
आराधकभावनी अपूर्व शरूआत थाय छे. पोताना आत्मामां तो सिद्धोने स्थापीने
शुद्धस्वरूपनो अनुभव वर्ते ज छे, ने सांभळवा आवेला श्रोताना आत्मामां पण
सिद्धोने स्थापीने कहे छे के हे श्रोता! सिद्ध जेवा शुद्धस्वरूपे तारा आत्माने लक्षमां
लईने ध्याव. आम सिद्धोने स्थापीने आराधकभावनी झणझणाटी बोलावतुं अपूर्व
मंगलाचरण करीने आचार्यदेव समयसार संभळावे छे आवा भावे जे समयसार
सांभळशे तेना मोहनो जरूर नाश थई जशे–एवा कोलकरार छे.