पात्रता छे. मारुं ध्येय सिद्धपद छे–एम स्वीकारीने आ समयसार सांभळजे. तेना
श्रवणमां शुद्धात्मानुं घोलन करतां करतां विकल्प तूटीने निर्विकल्प अनुभव थशे... ने
मोह नष्ट थईने पूर्णशुद्ध एवा सिद्धोमां तुं पहोंची जईश. आत्मानुं आवुं जे ध्येय, तेना
प्रतिबिंबरूप सिद्धभगवंतो छे. तेने ध्यावतां आ आत्मा तेमना जेवो थई जाय छे.
नीचे उतारीने गुंजामां नाख्यो ते द्रष्टांते साधक उपरना सिद्धभगवंतोने निर्मळ
ज्ञानदर्पण द्वारा नीचे उतारीने पोताना अंतरमां स्थापे छे. हे श्रोता! मारी जेम तुं पण
तारामां सिद्धने स्थापीने आ समयसार श्रवण करजे. श्रोता एवो छे के जेने सिद्धपद
सिवाय बीजानी अभिलाषा नथी, बीजुं ध्येय नथी. श्रवण वखते विकल्प होवा छतां
तेनुं लक्ष विकल्प उपर नथी, तेना लक्षनुं जोर शुद्धआत्मा तरफ ज ढळे छे.
सिद्ध पासे जईने बेठो, ते हवे रागनी पासे नहि रही शके. राग साथे एकताबुद्धि
राखीने सिद्धने नमस्कार न थई शके. सिद्धने नम्यो ते रागथी जुदो पड्यो. क्षायिक
भावने पामेला अनंता सिद्धोने आत्मानी ज्ञानपर्यायमां बेसाड्या, ते ज्ञानपर्यायमां
हवे उदयभाव नहि रही शके. उदय अने ज्ञान वच्चे तीराड पडी गई, ने
ज्ञानपरिणति शुद्धस्वभाव नमी गई.
चाली रह्यो छे ते ज अमे प्रसिद्ध कर्यो छे. अहो, सिद्धने नमस्काररूप एक
मांगळिकमां तो केटला बधा गंभीर भावो भर्यां छे! आचार्य देवनी शैली अजब
छे. अनंती सिद्धपर्यायोनुं सामर्थ्य आत्मानी शक्तिमां अत्यारे ज भर्युं छे. आवा
आत्मा तरफ झुकीने सिद्धोने नमस्कार कर्यां छे.