: आसो : २४९८ आत्मधर्म : ३३ :
भगवाननो उपदेश अमारा माटे छे
समयसारनी पांचमी गाथामां आत्माना निजवैभवनुं वर्णन करतां आचार्यदेव
कहे छे के (अनुशासजजन्मा) भगवाने अने गुरुओए प्रसादीरूपे जे उपदेश आप्यो ते
उपदेशरूप अनुशासनवडे अमारो निजवैभव प्रगट्यो छे. –(आना विवेचन वखते
गुरुदेव घणी प्रसन्नतापूर्वक खील्या हता ने अद्भुत भावो समजाव्या हता. जाणे
सर्वज्ञभगवान अत्यारे ज पोताने संबोधीने उपदेश आपी रह्या होय–एवा भावो
उल्लसता हता.
भगवाने जे उपदेश आप्यो ते अमने अनुलक्षीने ज आप्यो छे.... अमारा उपर
अनुग्रह करीने, अमने ज संबोधीने भगवाननो उपदेश नीकळ्यो छे. भगवाने उपदेश
आप्यो त्यारे ते अमारा माटे ज आप्यो हतो–एम पोताना भावनी भगवानना
उपदेश साथे सीधी संधि करी छे.
भगवान तो घणाकाळ पहेलांं थई गया ने?
काळनुं आंतरुं अमे जोता नथी; भावमां अंतर नथी, माटे काळनुं अंतर पण
नडतुं नथी.
भगवाने जे उपदेश आप्यो ते ठेठ अमारा सुधी प्रसादीरूपे प्राप्त थयो छे.
भगवान अने परंपरा बधा गुरुओ शुद्धात्मामां अंतर्निमग्न छे. पोते
शुद्धात्मामां अंर्तनिमग्न हता, उपदेशमां पण शुद्धात्मामां अंतर्निमग्न थवानुं कह्युं,
अने अमे ते झीलीने शुद्धात्मामां अंतर्निमग्न वर्तीए छीए... अने तेनो ज उपदेश
आपीए छीए. आवी संधिपूर्वकना निजवैभवथी आचार्यदेव शुद्धात्मा देखाडे छे.
हुं शुद्धात्मानुं स्वरूप संभळावीश... एनो अर्थ ए थयो के श्रोता पण एवो छे के
जे शुद्धात्मानुं स्वरूप ज सांभळवा तत्पर छे, एनाथी विरुद्ध बीजी वात जेने गोठती
नथी; एवा जिज्ञासु श्रोताने अमे शुद्धात्मा संभळावीए छीए. आनंदसहित अमारा
शुद्धात्माने अमे अनुभव्यो छे ते अनुभवसहित अमे देखाडशुं, ने तमे एवा
अनुभववडे शुद्धात्माने देखजो.
जुओ, तो खरा! श्रोताने भेगो ने भेगो राखीने आ समयसारमां शुद्धात्मा
देखाड्यो छे.