: ३४ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
उपदेश आपती वखते भगवाननुं ने सनतोनुं लक्ष अमारा उपर हतुं...अमारा
जेवा श्रोता माटे ज भगवाननो उपदेश नीकळ्यो हतो. भगवाने अमारा उपर कृपा
करीने उपदेश आप्यो हतो. पोतानुं उपादान तैयार छे त्यां निमित्त साथे संधि करीने कहे
छे के ए उपदेश अमने लक्षीने ज नीकळ्यो हतो...आम आचार्यदेवे अद्भुत गंभीरता
भरी छे.
(वीर सं. २४९४ आसो सुद २)
आठमी वखत समयसार पूरुं थयुं त्यारे–
ए वातनो आजे तो वीस वरस वीती गया... ए दिवस हतो सं. २००प नी
मागशर वद आठम एटले के भगवान, कुंदकुंददेवनी आचार्यपदवीनो महान दिवस.
अने अढी वरसथी चालता समयसारना आठमी वखतनां प्रवचनो पूर्ण करतां गुरुदेवे
कह्युं–‘हे जीवो! अंदरमां ठरो रे ठरो! अनंत महिमावंत शुद्धआत्मस्वभावनो आजे ज
अनुभव करो’ ...... ‘श्रुतपंचमीए शरू थयेलुं समयसार आचार्यपदवीना दिवसे पूर्ण
थाय छे;–श्रत एटले ज्ञान, ने आचार्यपदवीमां चारित्र छे, ज्ञानथी शरूआत थई ते
चारित्रपद प्रगट करी केवळज्ञान सुधी पहोंचीने पूरुं थशे.’ आवा मंगलपूर्वक गुरुदेवे
समयसार पूरुं कर्युं... अने साथे पूर्णताना उल्लासमां गुरुदेवे पोते ‘बोलो
समयसारभगवाननो...जय हो’ –एम जय बोलावी. –त्यारे समस्त श्रोताजनोए बहु
आनंद–उल्लासथी भक्तिपूर्वक ए जयकारने वधावी लीधो.... ए ज वखते बेन्डवाजाना
मंगळनादथी स्वाध्यायमंदिर गाजी ऊठ्युं. एवो हतो ए प्रसंग!
आ वात एवी छे के जो समजे तो अंदर
स्वानुभूतिनो रंग चडी जाय, ने रागनो रंग ऊतरी
जाय. आत्मानी शुद्ध अनुभूति रागना रंग वगरनी
छे; जेने आवी अनुभूतिनो रंग छे ते रागथी रंगाई
जतो नथी. हे जीव! एकवार आत्मामां रागनो रंग
ऊतारी स्वानुभूतिनो रंग चडाव.