Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : ३५ :
प्रवचनसार एटले जिनवाणीनी प्रसादी
[वीस वर्ष पहेलांंनी थोडीक प्रसादी]
आजथी वीस वर्ष पहेलांं वीर सं. २४७४ मां
ज्यारे प्रवचनसार–गुजराती प्रगट थयुं अने
गुरुदेवे मंगलप्रवचनो प्रारंभ कर्यां, ते वीस वर्ष
पहेलांंना प्रवचननी पण थोडीक मधुरी प्रसादी
अहीं आपीए छीए. सम्यग्दर्शन–ज्ञान उपरांत
वीतरागचारित्रनी केवी जोसदार आराधना
आचार्यदेवना अंतरमां उल्लसी रही छे! ते
आराधनाना रणकार आ प्रवचनसारमां गुंजी
रह्या छे.
श्री महावीर भगवाननी परंपराथी गुरुगमे अने श्री सीमंधर भगवान
पासेथी सीधुं जे ज्ञान मळ्‌युं तेने पोताना अंर्तअनुभव साथे मेळवीने आचार्यदेवे
आ शास्त्र रच्युं छे. प्रवचन एटले जिनवाणी, तेनो सार आ ‘प्रवचनसार’ मां
भर्यो छे.
प्रवचनसारनी शरूआतमां तीर्थनायक श्री वर्द्धमान स्वामीने तेमज
विदेहक्षेत्रे वर्तमान श्री सीमंधर तीर्थंकर वगेरे पंचपरमेष्ठी भगवंतोने वर्तमान
प्रत्यक्षरूप करीने आचार्यभगवान कहे छे के अहो प्रभो! हुं मोक्षलक्ष्मीना स्वयंवर
समान परम निर्ग्रंथतानी दीक्षानो उत्सव करुं छुं, तेमां मंगळाचरणरूपे मारी
सन्मुख सर्वे परमेष्ठी भगवंतोनी हार बेसाडीने एकेकना चरणे नमस्कार करुं छुं,
तथा सर्वेने साथे नमस्कार करुं छुं. मारा साधक ज्ञानमां सर्वे पंचपरमेष्ठी
भगवंतोने समाडीने नमस्कार करुं छुं.
आम श्री आचार्यदेवे मंगळाचरणमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने एवी रीते
नमस्कार कर्या छे के जाणे साक्षात् ते बधा भगवंतो पोतानी सन्मुख बिराजता
होय अने पोते तेमनी सन्मुख शुद्धोपयोगरूप साम्यभावमां लीन थई जता होय!