Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
८० अने ८१ मी गाथामां मोहनो क्षय तथा शुद्धात्मानी प्राप्ति केम थाय तेनो
उपाय बतावीने पछी ८२ मी गाथामां कहे छे के बधाय अर्हन्त भगवंतो ए ज विधिथी
कर्मोनो क्षय करीने तथा ए ज प्रकारे भव्यजीवोने उपदेश करीने मोक्ष पाम्य छे. अहो, ते
अर्हन्त भगवंतोने नमस्कार हो, पोतामां एवो शुद्धोपयोगरूप मार्ग प्रगट्यो छे तेना
प्रमोद सहित कहे छे के अहो! मोक्षमार्ग उपदेशनारा अरिहंतोने नमस्कार हो.
शास्त्रकर्ता आचार्यदेव वीतराग अने सराग चारित्रदशामां झुली रह्या छे....
आत्माना शुद्धोपयोगमां लीन थतां थतां तेमनी आ वाणी नीकळी छे...(लखतां
लखतांय वच्चे वारंवार शुद्धोपयोगमां ठरी जता हता...) तेथी पदे पदे शुद्धोपयोग रस
नीतरी रह्यो छे. जेनाथी सीधी शिवप्राप्ति थाय एवा शुद्धोपयोग माटे आचार्य देवना
अंतरमां केवी झंखना छे ते आ शास्त्रमां जणाई आवे छे. वर्तमान वर्तता रागनो
निषेध करीने, तेने दूरथी ज ओळंगी जवानी प्रतिज्ञा करीने, ज्ञायकभावमां डुबकी
मारीने सदाय तेमां ज समाई रहीने आत्मा संपूर्ण शुद्धोपयोगरूपे परिणमी जाय एवी
अंर्तभावना घूंटी छे.
टीकाकार आचार्यदेव कहे छे के परमानंदना पिपासु भव्य जीवोना हितने माटे
आ टीका रचाय छे; एटल के परमानंदना पिपासु जीवो आ काळे छे ने तेओ
परमानंदने प्राप्त करवाना छे. जे जीवो आ शास्त्रना भाव समजशे तेमने परम आनंद
प्रगट थशे.
आचार्य पोते पण पंचरमेष्ठी पदमां वर्ती रह्या छे. परंतु हजी सराग चारित्रदशा
छे तेथी ते राग टाळीने संपूर्ण शुद्धोपयोगनी भावना भावी छे. अंतर मुहूर्तमां क्षणे
क्षणे शुद्धोपयोग आव्या ज करे छे. घडीकमां शुद्धोपयोग प्रगट करी सातमा गुणस्थाने
वीतराग अनुभवमां लीन थाय छे, ने वळी पाछो शुभोपयोग थतां छठ्ठा गुणस्थाने
पंचमहाव्रत के शास्त्ररचना वगेरेनो विकल्प ऊठे छे; ते शुभनो अने तेना फळनो
निषेध करतां कहे छे के आ सरागचारित्र (शुभराग) अनिष्ट फळवाळुं छे. वीतराग–
चारित्रनुं फळ केवळज्ञान ने अतीन्द्रिय सुख छे ते ज ईष्ट छे. पंचमकाळमां मुनि छे ने
सरागचारित्र छे एटले स्वर्गमां तो जशे, पण तेनो आदर नथी, वीतरागचारित्रनी ज
भावना छे. आ रीते एकला शुद्धस्वभावनुं ज अखंड आराधन करीने अल्पकाळे
चारित्र पूरुं करी केवळज्ञान अने मोक्षदशा प्राप्त करशे. एवा आसन्नभव्य
आचार्यभगवंतोनी वाणी आ प्रवचनसार शास्त्रमां छे.