ने परसत्ताथी अभावरूप छे. सत्तारूप वस्तु छे, पण केवी सत्ता? के चैतन्यस्वभावथी
भरेली छे. आ मंगलाचरणमां शुद्ध आत्मद्रव्य, तेना गुण, ने तेनी निर्मळपर्याय ए त्रणे
आवी गया. ने तेने प्रगट करवानो उपाय पण बताव्यो के
जाणे छे; विकल्पवडे, रागवडे, वाणीवडे आत्मां जणातो नथी.
आत्मानी पूर्ण शुद्धदशा जेने प्रगटी ते देव छे, ते ईष्टपद छे, ते साध्य छे. तेने लक्षमां
लईने मंगळाचरणमां नमस्कार कर्यां छे. जे शुद्धआत्माने नम्यो ते रागने नहि नमे;
शुद्धात्मा जेणे रुचिमां लीधो ते रागनी रुचि नहि करे. रागथी जुदो पडीने शुद्धआत्माने
लक्षमां लीधो त्यां साधकदशा थई, अपूर्व मंगळ थयुं. ज्ञाननी बीज ऊगी ते हवे वधीने
केवळज्ञान–पूर्णिमारूप थशे.
शुद्धआत्मा तरफ पर्याय नमे ते साचा नमस्कार छे.
परमात्मा थया; तेम आ आत्मामां पण एवो स्वभाव विद्यमान ज छे, तेनी सन्मुख
थईने अनुभव करतां आ आत्मा पोते परमात्मा थाय छे. भाई, आवो तारो आत्मा छे
तेने तुं प्रतीतमां ले, ओळखाण कर. आवा स्वभावनी सन्मुख थईने अनुभव करतां
वच्चे रांगना भाव वगर सीधो आत्मा वेदनमां आवे छे; आवा स्वसंवेदनरूप जे क्रिया छे
ते धर्म छे, ते आत्माने प्रसिद्ध करवानो उपाय छे. अंतर्मुख आवी परिणतिमां भगवान
आत्मा आखो प्रसिद्ध थाय छे; तेमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे समाई गया.
पण एवो–