क्रियामां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे समाई जाय छे; विकल्प तेमां न आवे.
थाय छे;–भले मतिश्रुतज्ञान होय–पण स्वानुभूति वडे तेनाथी आत्मा पोते
पोताने स्पष्ट जाणी शके छे. अहा, ज्ञानवडे पोते पोताने जाणवो–तेमां कोई अपूर्व
आनंद छे. पोते पोताने जाणतां अतीन्द्रिय ज्ञान ने अतीन्द्रियसुख थाय छे. तेमां
बीजुं कोई साधन नथी. आत्मा साररूप एटला माटे छे के तेने जाणतां परमसुख
थाय छे. आत्मामां सुख छे ने तेने जाणतां सुख वेदाय छे. बाह्य पदार्थोमां सुख
नथी ने तेनी सामे जोतां सुख वेदातुं नथी. अहा, आवो सुखस्वभावी आत्मा ते
ज सर्वे पदार्थोमां साररूप उत्कृष्ट छे. आवा आत्माने लक्षमां लईने नमस्कार
कर्यां, ते अपूर्व मंगळ छे.
पण शुद्धआत्मा छे. रागादि मेलरहित वीतरागी शुद्धदशा जेणे प्रगट करी एवो
शुद्धआत्मा ज ईष्ट देव छे.
केवो धन्यकाळ हशे!! जगतनां भाग्य छे के आवुं शास्त्र आ काळे रचाई गयुं.
साक्षात् भगवाननो जेमने भेटो थयो ते कुंदकुंदाचार्यदेवनी अलौकिक दशानी शी
वात! ने टीकामां अमृतचंद्राचार्यदेवे पण समयसारना अलौकिक भावो खोल्यां छे.
जेम तीर्थंकर अने गणधरनी जोडी शोभे तेम कुंदकुंदाचार्य अने अमृतचंद्राचार्यनी
जोडी जैनशासनमां शोभे छे. तेमनुं रचेलुं आ समयसार ते तो साधकना हृदयनो
विसामो छे...ज्ञान अने रागनी भिन्नतानुं अलौकिक भेदज्ञान तेमां कराव्युं छे.