Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
[समयसार गा. ११ वीर सं. २४९४ आसो वद १]
जिनशासनना सारभूत पू. गुरुदेवनुं आ
महत्त्वपूर्ण प्रवचन सम्यग्दर्शननो अमोघ उपाय
देखाडे छे...मुमुक्षुने शुद्धात्मा तरफ अंगुलिनिर्देश
करीने कोई अपूर्व भावो जगाडे छे...
घणो जिज्ञासुओ पूछे छे के सम्यग्दर्शननी
सहेली रीत बतावोने! टूंको रस्तो बतावोने! झट
थई जाय एवुं बतावोने! ए बधाने माटे गुरुदेवनुं
आ एक प्रवचन बस छे. सम्यग्दर्शननी रीत एक ज
छे; एक सहेली रीत ने बीजी कठण रीत–एम बे रीत
छे ज नहि. एटले, सहेलुं लागे के अपूर्वताने कारणे
कठण लागे, पण आ गाथामां उपदेशेली रीत प्रमाणे,
शुद्धनयवडे बोध करीने, अशुद्धताथी भिन्न “सहज
एक ज्ञायकभाव” रूपे पोताने अनुभववो,–तेने माटे
ज उद्यम करवो, ते ज सम्यग्दर्शननी रीत छे; ते ज
रस्तो छे...ए रस्ते चालनार सम्यक्त्वपुरीमां जरूर
पहोंचशे ज...गुरुदेवना ए आशीर्वाद छे.