Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९प आत्मधर्म : १३ :
जिनवाणीनी प्रसादी
*
प्रवचनसारना प्रारंभना मंगलप्रवचनो गतांकमां
वांच्या..जाणे के पंचपरमेष्ठी भगवंतो ज पधार्या होय–एवा
उत्तम भावभीनां प्रवचनो चाली रह्यां छे. अहीं तो तेमांथी
थोडी थोडी प्रसादी ज आपी शकाय छे...केमके प्रवचनो तो
महिनामां ६० थाय, ज्यारे ‘आत्मधर्म’ तो महिनामां एक ज
आवे–अने ते पण मर्यादित पृष्ठ, तेमां केटलुं आपी शकाय?
छतां गुरुदेवना उत्तममां उत्तम भावोनुं दोहन करीने शक््य
एटली उत्तम सामग्री पीरसवा प्रयत्नशील छीए.
शुद्धोपयोग ज मोक्षनुं कारण छे; शुभोपयोग ते मोक्षनुं कारण नथी.
जे जीव सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सहित छे, एटले के धर्मरूपे परिणमेलो छे,
मुनिदशा साची अंगीकार करी छे, छतां ते पण ज्यांसुधी शुभपरिणामसहित वर्ते छे
त्यांसुधी मोक्षने साधी शकतो नथी, एटले शुभपरिणाम ते मोक्षना साधक नथी पण
मोक्षना विरोधी छे. मोक्षनुं साधक तो वीतरागचारित्र छे; वीतरागी शुद्धोपयोग–
परिणाम वडे ज मोक्ष सधाय छे. मुनिनेय शुभभाव मोक्षनुं कारण थतुं नथी तो नीचेना
शुभनी शी वात? अहीं तो स्पष्ट कहे छे के शुभराग ते चारित्रथी विरुद्ध छे. चारित्र ते
वीतरागभावरूप छे, ने राग तेनाथी विरुद्ध जातनो छे. वीतरागी चारित्र मोक्षनुं कारण
छे ने शुभराग ते बंधनुं कारण छे. माटे शुद्धोपयोगरूप वीतरागचारित्र अंगीकार करवा
जेवुं छे, ने शुभराग ते ईष्टफळने रोकनार होवाथी छोडवा जेवुं छे. अहा, आवी
चारित्रदशा प्रगट करे तेनी तो शी वात! ते चारित्रदशानी ओळखाण करनारा जीवो
पण विरल छे.
वीतरागचारित्ररूप शुद्धोपयोगी जीवो ज मोक्ष पामे छे; शुभोपयोगी जीवो तो
स्वर्गसुखना बंधने पामे छे–एटले ते तो मोक्षथी विरुद्धकार्य थयुं.–अहीं तो