Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
मुनिना शुभनी वात छे, मुनि तो ते शुभने हेय जाणे ज छे, ने शुद्धताने साधी ज
रह्या छे. अज्ञानी शुभने हेय न मानतां तेने मोक्षना कारणरूप समजीने उपादेय
माने छे, तेने शुद्धतानो तो अंश पण नथी, राग वगरना मोक्षमार्गने ते जाणतो
पण नथी. मुनिने जे शुभोपयोग छे ते पण धर्म नथी. मुनि पोते धर्मरूपे
परिणमेला छे, पण ते तो जेटलो वीतरागभाव थयो छे तेटलो ज धर्म छे; कांई
शुभराग ते धर्म नथी; धर्मपरिणति अने रागपरिणति बंनेनी जात ज जुदी छे.
पहेलेथी ज आवी श्रद्धा अने ओळखाण वगर धर्मनी शरूआत पण थती नथी.
धर्मीने अंशे शुद्धपरिणति ने अंशे शुभराग बंने साथे भले होय, पण तेथी कांई ते
बंने धर्म नथी. धर्म तो शुद्धता ज छे; ने राग ते धर्म नथी.
अरे, शुभरागनुं फळ तो दुःख छे; भले एने स्वर्गसुख कह्युं पण तेमां
आकुळतारूप दाहदुःख छे; आत्मानो शुद्धोपयोग ज सुखरूप छे. तेथी ते ज उपादेय छे;
शुभउपयोग तो हेय छे ने अशुभउपयोग तो अत्यंत हेय ज छे. आ प्रमाणे नक्की
करीने आचार्यदेवे पोतामां शुद्धोपयोगपरिणति प्रगट करी; एटले के साक्षात् मोक्षमार्ग
अंगीकार कर्यो. आवो ज मोक्षमार्ग छे, ने बीजो मोक्षमार्ग नथी–एम हे जीवो! तमे
जाणो.
हवे कहे छे के शुद्धोपयोगरूप जे मोक्षमार्ग छे ते आत्माना परिणाम ज छे;
आत्मा ज ते शुद्धोपयोगरूपे परिणमे छे.
* वस्तु पोते परिणामस्वभावी छे *
दरेक वस्तु परिणामस्वभाववाळी छे; परिणाम ते वस्तुनो स्वभाव ज छे एटले
कोई बीजाना कारणे परिणाम थाय एम नथी. स्वभावथी ज वस्तु पोते परिणामवाळी
छे.–आ सिद्धांत बधाय पदार्थोमां लागु पडे छे.
वस्तु होय ने तेने कोई परिणाम न होय एम बने नहि. परिणाम न होय तो
वस्तु ज न होय. उष्णपरिणाम न होय तो अग्नि ज न होय, ज्ञानपरिणाम न होय तो
आत्मा ज न होय, स्पर्शपरिणाम न होय तो पुद्गल ज न होय. वस्तु अने परिणाम
जुदां नथी एटले वस्तु सदा पोताना परिणामसहित ज होय छे, एवो एनो स्वभाव
ज छे. एटले कोई निमित्ते ते परिणाम कर्या एम नथी.