रह्या छे. अज्ञानी शुभने हेय न मानतां तेने मोक्षना कारणरूप समजीने उपादेय
माने छे, तेने शुद्धतानो तो अंश पण नथी, राग वगरना मोक्षमार्गने ते जाणतो
पण नथी. मुनिने जे शुभोपयोग छे ते पण धर्म नथी. मुनि पोते धर्मरूपे
परिणमेला छे, पण ते तो जेटलो वीतरागभाव थयो छे तेटलो ज धर्म छे; कांई
शुभराग ते धर्म नथी; धर्मपरिणति अने रागपरिणति बंनेनी जात ज जुदी छे.
पहेलेथी ज आवी श्रद्धा अने ओळखाण वगर धर्मनी शरूआत पण थती नथी.
धर्मीने अंशे शुद्धपरिणति ने अंशे शुभराग बंने साथे भले होय, पण तेथी कांई ते
बंने धर्म नथी. धर्म तो शुद्धता ज छे; ने राग ते धर्म नथी.
शुभउपयोग तो हेय छे ने अशुभउपयोग तो अत्यंत हेय ज छे. आ प्रमाणे नक्की
करीने आचार्यदेवे पोतामां शुद्धोपयोगपरिणति प्रगट करी; एटले के साक्षात् मोक्षमार्ग
अंगीकार कर्यो. आवो ज मोक्षमार्ग छे, ने बीजो मोक्षमार्ग नथी–एम हे जीवो! तमे
जाणो.
छे.–आ सिद्धांत बधाय पदार्थोमां लागु पडे छे.
आत्मा ज न होय, स्पर्शपरिणाम न होय तो पुद्गल ज न होय. वस्तु अने परिणाम
जुदां नथी एटले वस्तु सदा पोताना परिणामसहित ज होय छे, एवो एनो स्वभाव
ज छे. एटले कोई निमित्ते ते परिणाम कर्या एम नथी.