: कारतक : २४९प आत्मधर्म : १प :
जेम मुक्तजीवो पोतानी सिद्धपर्यायरूप शुद्धपरिणाम वगरना होतां नथी.
मोक्षदशामां शुद्धजीवने पण केवळज्ञान–सुख वगेरे शुद्धपरिणामोनुं अस्तित्व छे.
परिणाम ए कांई उपाधि नथी, ए तो वस्तुनो स्वभाव छे. कोई कहे के मोक्षमांय जीवने
परिणाम होय?–हा भाई! मोक्षमांय जीवने परिणाम होय छे,–अशुद्धपरिणाम नथी
होता, शुद्धपरिणाम ज होय छे.–‘सादि अनंत अनंत समाधि सुखमां, अनंत दर्शन ज्ञान
अनंत सहित जो’–आवा परिणाम मुक्तजीवने पण होय छे.
अहीं तो एक कहेवुं छे के जगतना बधा पदार्थोने पोतपोताना परिणाम होय छे.
कोई पदार्थ परिणाम वगरनो नथी होतो; ने कोई परिणाम ते पदार्थ वगरना होता
नथी. जेम सिद्धपरिणाम छे ते मुक्तजीवरूप पदार्थ वगर होता नथी. एकला क्षणभंगुर
परिणामने ज माने ने वस्तुने न माने तो तेने पण परिणामस्वभावी वस्तुनी खबर
नथी. वस्तु वगर परिणाम कोनां? द्रव्य–गुण–पर्यायरूप अथवा उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप
एवा निजस्वभावमां वस्तु रहेली छे, ते ज सत् छे. आवा सत् स्वभावमां रहेली
वस्तुने ओळखतां वीतरागता थाय छे. ज्ञान अने ज्ञेयोना यथार्थ स्वभावनो जेणे
निर्णय कर्यो छे तेने ज प्रशमदशारूप चारित्र प्रगटे छे. ज्ञान ज जेनुं डामाडोळ होय तेने
चारित्रदशानी स्थिरता केवी? तेथी ज्ञानअधिकारमां छेल्ले कहेशे के आत्माना
जाणवानो ईच्छक जीव सर्व पदार्थोने द्रव्य–गुण–पर्यायसहित जाणे छे के जेथी मोहांकुरनी
बिलकुल उत्पत्ति न थाय.
जुओ, द्रव्य–गुण–पर्यायस्वभावमां रहेली वस्तुनुं ज्ञान करवाथी मोहनो नाश
थाय छे. पोतानी पर्याय ते पोताना स्वभावथी थई छे, बीजाथी थई नथी–एम नक्की
करतां द्रष्टि अंर्तस्वभावमां झुके छे, पर साथेनी एकत्वबुद्धि छूटी जाय छे ने मोह नष्ट
थई जाय छे. ते उपरांत द्रव्य–गुण–पर्यायनुं विशेषज्ञान ते पण वीतरागतानुं कारण छे.
पर्याय ते वस्तुनो स्वभाव छे–एम तेने स्वतंत्र न जाणतां, परने लीधे पर्याय थवानुं
माने तेने मोह कदी छूटे नहि; परथी पर्याय माने तेने तो पर साथे एकत्वबुद्धिथी
रागद्वेष थया ज करे. एटले परिणामस्वभावी वस्तुने जाण्या वगर सम्यग्दर्शन,
सम्यग्ज्ञान के सम्यक्चारित्र होय नहीं. अहो, द्रव्य–गुण–पर्यायरूप वस्तुस्वभाव
सर्वज्ञदेवे बताव्यो छे, तेनुं कथन जैनशासन सिवाय बीजामां यथार्थ होय नहि.
वस्तुना परिणाम परवस्तुना आश्रये थता नथी पण वस्तु पोते परिणाम–