Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 45

background image
: १६ : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
स्वभाववाळी छे; परिणामी पदार्थ ज पोताना परिणामरूपे परिणमे छे. एक क्षण पण
एवी नथी होती के पदार्थ परिणाम वगरनो एकान्त कूटस्थ होय. तेमज परिणाम
त्रिकाळीवस्तुना आश्रये थाय छे. ध्रुवने न स्वीकारे ने एकली क्षणिकताने ज माने
तोपण तेने यथार्थ वस्तुस्वरूपनी खबर नथी. मोक्षमां सिद्धपर्याय छे पण आत्मवस्तु
नथी–एम न बने; अथवा मोक्षमां आत्मा छे पण तेने ज्ञानादि कोई पर्याय नथी–एम
पण न बने. द्रव्य–गुण–पर्यायरूप वस्तु छे, ते ज सत् छे. तेमांथी एक्केय अंशने काढी
नांखतां वस्तु ज सत् रहेती नथी.
आवुं वस्तुस्वरूप नक्की करनार जीव पोताना परिणाम पोतानी वस्तुना ज
आश्रये जाणीने स्वाश्रये परिणमे छे, एटले स्वभावना आश्रये साधकभावरूप निर्मळ
दशा थतां थतां केवळज्ञान अने मोक्ष प्रगटे छे.
वस्तु परिणामस्वभाववाळी छे; समयेसमये परिणाम थवा ते दरेक वस्तुनो
स्वभाव छे. परिणाम ते उपाधि नथी पण वस्तुनुं स्वरूप छे. अशुद्धता ते उपाधि छे,
पण निर्मळ परिणाम ते तो स्वभाव छे, तेने जुदा करी शकाय नहि.
जो वस्तु परिणमनस्वभाववाळी न होय तो संसारदशाथी छूटीने मोक्षदशारूपे
आत्मा कदी परिणमी शके नहि. जे पोतानुं कल्याण करवा ईच्छे छे ते एक क्षणमां
कल्याण करवा ईच्छे छे, ने ते कल्याणरूपे पोते कायम टके एम ईच्छे छे, एटले एक
क्षणमां पलटो खाईने अकल्याणमांथी कल्याणरूपे परिणमी जाय, ने छतां द्रव्यपणे
कायम टके एवी आत्मानी ताकात छे; मिथ्यात्वमांथी सम्यक्त्वभावरूपे एक क्षणमां
आत्मा परिणमी जाय छे. अने ते परिणाम कोई बीजाना आश्रये नथी थता पण
परिणामी एवो जे पोतानो स्वभाव तेना आश्रये ज परिणाम थाय छे. जडना
परिणामो जडना आश्रये थाय छे, चेतनना परिणामो चेतनना आश्रये थाय छे.
चेतनना परिणामो जडना आश्रये, के जडना परिणामो चेतनना आश्रये थता नथी.
उपादानना परिणामो उपादानना आश्रये थाय छे, परवस्तुरूप निमित्तना आश्रये
उपादानना परिणामो थता नथी. अहो, केवो स्वतंत्र वस्तुस्वभाव छे! एकेक समयना
परिणामो स्वतंत्र स्वाधीन छे. पण ऊंधी द्रष्टिमां अज्ञानीने स्वाधीनता देखाती नथी ने
समयेसमये ते पोताने पराधीन माने छे, एटले पराश्रयबुद्धिथी अशुद्धतारूपे परिणमे
छे; ते संसार छे.