Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 45

background image
: १८ : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
शुद्धोपयोगनुं फळ – अतीन्द्रिय महान सुख
( – ते ज प्रशंसनीय छे; रागनुं फळ प्रशंसनीय नथी)
आचार्यभगवाने प्रवचनसारनी शरूआतमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार
करीने मोक्षनो स्वयंवरमंडप मांडयो छे...अमे पंचपरमेष्ठीमां भळीने मोक्षलक्ष्मीने
साधवा नीकळ्‌या छीए, तेनो आ मंगलउत्सव छे.
मोक्षनुं साधन शुं? के शुद्धोपयोगरूप वीतरागचारित्र ते ज मोक्षनुं साधन छे; ने
वच्चे आवतो शुभराग ते तो बंधनुं कारण छे, तेथी ते हेय छे.–आम शुभरागने छोडीने
शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्गने आचार्यदेवे अंगीकार कर्यो...पोते शुद्धोपयोगी चारित्रदशारूपे
परिणम्या.
आ रीते शुभ–अशुभपरिणतिने छोडीने अने शुद्धोपयोगपरिणतिने आत्मसात
करीने आचार्यदेव शुद्धोपयोगअधिकार शरू करे छे; पोते ते–रूपे परिणमीने तेनुं कथन
करे छे. तेमां प्रथम शुद्धोपयोगना प्रोत्साहन माटे तेना फळनी प्रशंसा करे छे: अहो,
शुद्धोपयोग जेमने प्रसिद्ध छे एवा केवळीभगवंतोने आत्मामांथी ज उत्पन्न अतीन्द्रिय
परम सुख छे. बधा सुखोमां उत्कृष्ट सुख केवळीभगवंतोने छे; ते सुख राग वगरनुं छे,
ईन्द्रियविषयो वगरनुं छे, अनुपम छे अने अविनाशी छे, वच्चे भंग वगरनुं
अविच्छिन्न छे. संसारना कोई विषयोमां एवुं सुख नथी.
अहो, आवुं अपूर्व आत्मिकसुख परम अद्भुत आह्लादरूप छे, ते जीवे पूर्वे कदी
अनुभव्युं नथी. सम्यग्दर्शनमांय आवा अपूर्वसुखना स्वादनो अंश आवी जाय छे, पण
अहीं शुद्धोपयोगना फळरूप पूर्ण सुखनी वात छे.
शुद्धोपयोगथी आत्मा पोते पोतामां लीन थतां. अतीन्द्रिय सुख उत्पन्न थयुं,
तेमा बीजा कोई साधननो आश्रय नथी, एकला आत्माना ज आश्रये ते सुख प्रगट्युं
छे. तेने आत्मानो एकनो आश्रय छे ने बीजाना आश्रयथी निरपेक्ष छे, बीजा कोईनो
आश्रय तेने नथी,–आम अस्ति–नास्तिथी कह्युं. आत्माथी ज उत्पन्न अने विषयोथी
पार–एवुं सुख ते ज साचुं सुख छे, ने ते सुखनुं साधन शुद्धोपयोग छे. माटे ते
शुद्धोपयोग उपादेय छे. आम शुद्धोपयोगना फळरूप परमसुखनुं स्वरूप बतावीने