: कारतक : २४९प आत्मधर्म : ३प :
दर्शना:– हे सखी! एवो आत्म–अनुभव आपणने थाय?
चेतना:– हे बहेन, केम न थाय! आपणे पण जीव छीए; ने आत्मानो अनुभव
करी शकीए छीए.
दर्शना:– बहेन! आवा अनुभवी आत्माओ आपणा देशमां अत्यारे छे?
चेतना:– हा बहेन! सौराष्ट्रमां सुवर्णपुरी धाम (सोनगढ) छे त्यां आत्माना
अनुभवी धर्मात्माओ बिराजे छे; अने अनुभव माटेनो धोधमार उपदेश त्यां सांभळवा
मळे छे.
दर्शना:– हे सखी! आवी वात सांभळतां तो मने पण सोनगढ जईने ए
धर्मात्माओनां दर्शन करवानी अने अनुभवनो उपदेश सांभळवानी तीव्र ईच्छा थई छे,
तो आपणे क््यारे जईशुं?
चेतना:– चाल आजे ज जईए. धर्मना काममां ढील शुं?
दर्शना:– हे सखी! चाल आजे ज संतनी छायामां जईए, अने आ त्रिविध
तापथी बचवा शीघ्रमेव आत्मानो अनुभव करीए.
* *
बधा सभ्योने खास सूचना करवानी के आ दिवाळीथी जन्मदिवसनी भेट योजना
फरी चालु करी छे, ते दिवसे सभ्योने एक सुंदर फोटो अने कार्ड भेट मोकलाय छे. तो आ
माटे एकवार फरीथी नीचेनी विगत दरेक सभ्य लखी मोकले– (नाम अने सरनामुं,
सभ्य नंबर उंमर...अभ्यास...जन्मदिवस.) घणा सभ्योनां सरनामा अधूरा छे,
घणायना जन्मदिवसनी नोंध नथी,–तो तमने तमारी जन्मदिवसनी भेट क््यांथी मळशे?
माटे उपरनी बधी विगत तरत लखी मोकलावजो.
– आत्मधर्म बालविभाग, सोनगढ (सौराष्ट्र)
* [अमदावादना सभ्योने सूचना करवामां आवे छे के हवेथी पोताना
जन्मदिवसनी भेट अमदावादमांथी ज मेळवी लेवी; तथा ‘महाराणी चेलणा’ नुं पुस्तक
जेमने न मळ्युं होय तेमणे पण रविवारे जईने मेळवी लेवुं. सरनामुं–दि. जिनमंदिर
खाडीया चार रस्ता.) अमदावादना २प बालसभ्यो तलोद शिक्षणशिबिरमां गयेला, ने
त्यां तेमनो उत्साह जोईने सौ प्रसन्न थया हता.
*मुंबईना मु. श्री मुलचंदभाई तलाटीए पत्र द्वारा आसो मासना अंक बाबत
पोतानो खूब ज प्रमोद व्यक्त कर्यो छे, अने आत्मधर्म प्रत्ये विशेष लागणी बतावी छे.