Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
* पोस्ट ओफिसने धन्यवाद! भारत बहार एडिसअबाबा (ईथीओपीआ) मां
आपणा एक सभ्य (No. १६१६) छे. गत दिवाळीए (एक वर्ष पहेलां) तेमने
दीवाळीनुं अभिनंदन कार्ड आपणे मोकलेल, पण भूलथी कार्ड उपर छ पैसानी ज टीकीट
लगाडेली; एमां तो ते कार्ड परदेश पहोंच्युं, त्यां त्रण वखत तपास करी, अंते नव
महिने भारत पाछुं आव्युं ने कांईपण वधु चार्ज वगर आपणने मळ्‌युं–जे अत्यारेय
बालविभागनी फाईलने शोभावी रह्युं छे.
* दिल्हीथी दीपक जैन लखे छे–“आत्मधर्म वांची खूब ज आनंद थयो.
सोनगढमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोनो मेळो भरायो छे, तो ते मेळामां आववानुं खूब ज
मन थाय छे.”
* अमेरिकाना आपणा सभ्य मधुबेन जैन लखे छे के: जन्मदिवसनुं कार्ड मळतां
खूब आनंद थयो. अहीं आत्मधर्म मळतां तो जाणे सोनगढ ज मळ्‌युं होय एवो आनंद
थाय छे. ‘आत्मधर्म’ रसपूर्वक वांचुं छुं ने अमारा जेवा माटे तो ते आशीर्वादरूप छे.
भारतना मारा बालविभागना मित्रोनी प्रगति जणावता रहेशो.”
* गोरेगांवथी शैलाबेन जैन (नं. २९प) लखे छे के आत्मधर्म तथा तेनो
बालविभाग घणा उत्साहथी वांचीए छीए. तेमां प्रश्नो पूछो त्यारे एवा प्रश्न पूछशो के
आत्मधर्ममांथी ज तेनो जवाब मळी रहे...ने अमारे ते शोधवा माटे फरजियात आखुं
‘आत्मधर्म’ वाचंवुं पडे. (बहेन, आवी योजना आ अंकमां ज रजु थाय छे.) तमारा
प्रश्नोना जवाब हवे पछी आपीशुं; तमे तथा तमारा भाई–बहेने दररोज स्वाध्याय
करवानो जे नियम कर्यो ते बदल धन्यवाद!
– –
–: वैराग्य समाचार :–
अंक छापतां छापतां गोंडलना समाचार छे के त्यांना पटेल भुराभाई
रूडाभाईने ता. १प–१०–६८ ना रोज सर्पदंश थतां तेओ स्वर्गवास पामी गया छे.
तेमनी उंमर मात्र ३७ वर्षनी हती. तेओ कोई कोई वार सोनगढ पण आवता, ने
गोंडलमां लगभग दररोज जिनमंदिरे जता हता. सर्पदंश पछी तेओ चालीने ईस्पिताले
गयेला ने मुमुक्षुभाईओ साथे धर्मसंबंधी वात करता हता. देव–गुरु–धर्मना शरणे तेओ
आत्महित पामे–ए ज भावना.