Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९प आत्मधर्म : ३७ :
साचो आत्मा... उत्तम आत्मा
शुद्धआत्माना अनुभव वडे जेणे वीतराग–रत्नत्रय प्रगट कर्या तेणे आत्मानुं
साचुं धन प्राप्त कर्युं...ने तेणे स्वघरमां वास्तु कर्युं...ते साचो आत्मा थयो...
[सोनगढ धनतेरसना रोज भाईश्री प्रेमचंद केशवजी (नाईरोबीवाळा) ना
मकानना वास्तुप्रसंगे स. कळश ६ उपर पू. गुरुदेवनुं प्रवचन]
अनंतकाळमां पूर्वे नहि थयेलुं एवुं आत्मानुं सम्यग्दर्शन केम थाय? एटले
अपूर्व सुखनी शरूआत केम थाय तेनी आ वात छे. आत्मा अतीन्द्रिय आनंदथी,
अतीन्द्रियज्ञानथी पूर्ण वस्तु छे; आवा आत्मानी सन्मुख थईने श्रद्धा करतां सम्यग्दर्शन
अने अतीन्द्रियसुख प्रगट थाय छे. ए सिवाय नवतत्त्व संबंधी भेद–विकल्प ते राग छे,
ते कांई सम्यग्दर्शन नथी; ते विकल्पमां साचो आत्मा अनुभवातो नथी. साचो आत्मा
एटले के परिपूर्ण आत्मा पोताना शुद्ध गुण–पर्यायमां ज व्यापनारो छे, ते विकल्पमां
व्यापतो नथी. नवतत्त्वना विकल्पमां लाभ मानीने अटकतां मिथ्यात्व छे. निज–
परमात्माने अनुभवमां लईने प्रतीत करतां सुखनो स्वाद आवे छे, ते ज साचो आत्मा
छे, ते ज सम्यक्त्व छे.
आवा शुद्ध आत्माने श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवमां लेवो ते ज आत्मानुं साचुं धन छे;
धर्मी तेने ज चाहे छे, ए सिवाय बीजानी चाहना धर्मीने नथी, संयोगनी के विकल्पनी
भावना तेने नथी. वीतरागतानी ज भावना छे, ने वीतरागता शुद्ध आत्माना
अनुभवथी थाय छे, एटले शुद्धआत्मानी ज भावना छे. ‘जेवा छईए तेवा थईए’
एटले जेवो स्वभाव छे तेवो ज पर्यायमां प्रगटे,–ए सिवाय बीजानी भावना नथी.
‘शुद्ध छुं–शुद्ध छुं’ एम विकल्प कर्या करे तेथी कांई शुद्धनो अनुभव थतो नथी; शुद्धना
विकल्पनो पक्ष करे तोपण मिथ्यात्व रहे छे. द्रव्य–पर्याय बंने जेम छे तेम बराबर
जाणीने, ज्ञानने अंतर्मुख करीने प्रतीत करतां विकल्पातीत आत्मा अनुभवमां आवे छे;
आवा अनुभववडे ज वीतरागता थाय छे. जेवो स्वभाव हतो तेवो प्रगट अनुभवमां
आव्यो, एटले जेवो हतो तेवो थयो, जेवो हतो तेवो परिणम्यो,–ते आत्मा साचो
आत्मा थयो.