Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
(३९८) वळी जेनुं मुख कोई काळे पण नहीं जोउं; जेने कोई काळे हुं ग्रहण नहीं
ज करूं; तेने घेर पुत्रपणे, स्त्रीपणे, दासपणे, नाना जंतुपणे शा माटे जन्म्यो? अर्थात्
एवा द्वेषथी एवारूपे जन्मवुं पड्युं! आने तेम करवानी तो ईच्छा नहोती! कहो ए
स्मरण थतां आ कलेषित आत्मा परत्वे जुगुप्सा नहीं आवती होय? अर्थात् आवे छे.
(३९९) वधारे शुं कहेवुं? जे जे पूर्वनां भवांतरे भ्रांतिपणे भ्रमण कर्युं, तेनुं
स्मरण थतां हवे केम जीववुं ए चिंतना थई पडी छे. फरी न जन्मवुं, अने फरी एम न
ज कहेवुं एवुं द्रढत्व आत्मामां प्रकाशे छे.
(४००) सुखधाम अनंत सुसंत चही,
दिनरात रहे तद् ध्यानमहीं;
प्रशांत अनंत सुधामय जे,
प्रणमुं पद ते वर ते जय ते.
श्रीमद्ना जीवननुं आ अंतिम काव्य छे........
मात्र ३३ वर्ष प मासना आयुमां देहांतना थोडा दिवस पहेलां चैत्र सुद ९ ना
रोज उपरोक्त शब्दो द्वारा तेमणे, संतोने अति व्हालुं एवुं जे सुखधाम चैतन्यपद, तेने
याद करी तेना ध्याननी भावना भावी, तेने प्रणमन करीने तेनो जयकार कर्यो छे. ए
रीते चैतन्यपदना जयकारपूर्वक तेनी आराधनासहित स्वर्गे सीधाव्या छे...ने हवे
अल्पकाळमां ते आराधना पूर्ण करीने सादि–अनंत सुखमय एवा परम पदने पामशे ने
सिद्धालयमां बिराजशे.
एवा सिद्धपदसाधक सन्त श्रीमद् राजचंद्रजीने नमस्कार हो.
एवा साधक सन्तोनी ओळखाण करावनार कहानगुरुने नमस्कार हो.
– –
एवा कया जीवो छे के जेओ जन्मथी मांडीने
आखी जींदगी दरमियान वधुमां वधु सात कर्मो ज
बांधे छे,–आठ कर्मो जीवनमां क््यारेय नथी बांधता?