Atmadharma magazine - Ank 301
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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ज्ञानसूर्यनुं सोनेरी सुप्रभात
(कारतक सुद एकमना मंगलप्रवचनमांथी)
[आत्मामां नवा वर्षनो प्रारंभ...अने संतोनी ऊंचामां ऊंची बोणी]
चैतन्यप्रकाशी सोनेरी सुप्रभातना मंगळरूपे सवारमां जिनेन्द्रभगवानना दर्शन
बाद मांगलिक संभळावीने गुरुदेवे कह्युं के: अरिहंत–सिद्ध–साधु–धर्म ए चार शरण छे,
तेमां शुद्ध आत्मा ज शरणरूप छे. चैतन्यचंद्र–ज्ञानसूर्य एवा आत्मानो उदय
(अनुभव) ते सोनेरी सुप्रभात छे. आवो आत्मा पोतानी ज्ञानसृष्टिनो रचनार छे.
आत्मा पोते अकृत्रिम, छेदाय नहि भेदाय नहि एवो छे, कोई तेनो रचनार नथी, पण
ते पोते पोतानी ज्ञानसृष्टिनो (ज्ञान पर्यायनो) रचनार छे, ने ज्ञाननी रचना करतां
करतां केवळज्ञानरूपी सृष्टिने रचे ते महान सुप्रभात छे.
आम आनंदमंगळ पछी खीचोखीच भरेला जिनमंदिरमां सीमंधरनाथ वगेरे
भगवंतोनुं महा पूजन थयुं. पछी समयसारनी तेरमी गाथा उपरना प्रवचनमां
सम्यक्त्वरूपी सुप्रभात उगाडवानी प्रेरणा करतां गुरुदेवे कह्युं के आत्मानो
भूतार्थस्वभाव नवतत्त्वोना विकल्पोथी पार छे. एवा आत्माना अनुभववडे आत्मामां
साचुं सुप्रभात ऊगे छे. भाई! अनंतकाळथी तुं अज्ञानमां रह्यो छो, तारा आत्मामां
साचुं ज्ञानप्रभात तें कदी उगाडयुं नथी. ते प्रभात केम ऊगे तेनी आ वात छे.
अहीं सुप्रभातमां आत्मा प्रकाशमान थवानी वात आवी छे. भगवान आत्मा
कई रीते प्रकाशमान थाय?–के नव तत्त्वोमां भूतार्थनयथी एक शुद्धजीव ज प्रकाशमान
छे. पर्यायने अंतर्मुखक रीते जोतां एकरूप स्वभावपणे शुद्धजीव प्रकाशे छे एटले के ते
प्रगट अनुभवमां आवे छे. पहेलां आवो स्वभाव लक्षमां ने समजणमां तो ल्यो! साचा
आत्मानी समजण वगर तेना अनुभवनो प्रयोग क््यांथी थशे?
जुओ, आ सर्वज्ञनी वाणीमां जे आव्युं ते ज संतोए प्रसिद्ध कर्युं छे. छोकरो
खोवाई जाय तो शोधे छे, पण तें तने पोताने कदी गोत्यो? अनादिनो पर्यायना
विकारमां खोवाई गयो छो, पर्यायनी पाछळ आखो चिदानंद स्वभाव छे तेने
अंर्तद्रष्टिथी शोध! एनी अंर्तद्रष्टि ते ज अपूर्व बेसतुं वर्ष ने सुप्रभात छे. आवुं
प्रभात जेने ऊग्युं ते परमात्मा थशे.