: ४ : आत्मधर्म : कारतक : २४९प
मंगल दीपावली
दीपावलीना सुप्रभाते सुवर्णपुरीमां अनेरा झगझगाटथी वीरनाथनो निर्वाण–
उत्सव उजवायो...सुवर्णधाम एवुं लागतुं हतुं के आ पावापुरी ज छे के शुं!
गुरुदेवे वीरनाथना दर्शन बाद सवारमां कह्युं के आजे भगवानना मोक्षनुं
२४९प मुं वर्ष बेठुं. अहा, सिद्धदशामां भगवानने २४९४ वर्ष थई गया... भगवान तो
सदाय पूर्ण ज्ञान ने आनंदमां ज लीन रहेनारा छे. ते भगवानना सिद्धपदनो आजे
मंगळ दिवस छे.
त्यार पछी उमंग भर्या पूजनादि बाद प्रवचनमां घणा प्रमोदथी गुरुदेवे कह्युं–
अहो, आत्मानो स्वभाव परम महिमावंत छे. तेनी समीप, अने भेदविकल्पथी दूर
एवा अनुभव वडे भगवान आजे अशरीरी सिद्धपद पाम्या. ईन्द्रोए पावापुरीमां तेनो
महोत्सव उजव्यो; लोकोए दीपकोनी माळा प्रगटावीने उत्सव कर्यो; साचा तो
सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय दीवडा छे, तेना वडे आत्मामां आनंदरूप दीवाळी प्रगटे छे.
अहो, आवो अवसर आव्यो छे.
जीवद्रव्यना स्वभावनी समीप जईए अनुभव करतां सम्यग्दर्शनादि थाय छे, –
तेमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे आवी जाय छे. जीवद्रव्य, स्वभाव कहेतां तेना गुणो, ने
तेनी समीपता ते स्वसन्मुख पर्याय;–आवा आत्मामां पर्यायने एकाग्र करीने अनुभव
कर्यो तेमां मोक्षमार्ग आव्यो, तेमां आनंद आव्यो. पोताना घरे जवानो आ मार्ग
छे...मोक्षघरे जवानो आ रस्तो सन्तोए बताव्यो छे. आ समजवुं ते ज दीवाळी छे.
–तेथी प्रवचनमां वारंवार गुरुदेव कहे छे के भाई! आ समजवामां ध्यान
राखो...ध्यान राखो! बहारमां बीजे (अप्रयोजनभूतमां) ध्यान राखे छे ने तेमां बुद्धि
चलावे छे तेने बदले आत्मानो महिमावंत स्वभाव, तेने समजवा माटे तेमां उपयोग
लगाववा जेवुं छे;–तेमां ध्यान राखवुं ने तेमां बुद्धि जोडवी–ए ज आत्माना हितनो ने
मोक्षनो उपाय छे.
[जय महावीर–सिद्ध...जय गौतम–अरहन्त]