अभेदस्वभाव तरफ झुकेली पर्याय, तेमां
सामान्यनो आविर्भाव छे, ने ते पर्याय
नथी, पण स्वभाव साथेनी एकताना
कहेवाय छे, एने जैनधर्म कहेवाय छे, एने ज
भावश्रुत अने मोक्षमार्ग कहेवाय छे. एने ज
छे; एने ज आनंदनो स्वाद अने
गंभीर भाव छे!–आमां ज्ञाननो स्वाद छे, ने
आमां ज शांति छे. भेदज्ञान ने सम्यग्दर्शन
आमां समाय छे. आ ‘आत्मरस’ छे तेमां
कह्यो, अंतरमां अभेद थयेली स्वानुभवरूप
निर्मळ पर्यायने ज आत्मा कही दीधो, केमके
ते पर्याय अभेद छे, अने ते
भावश्रुतपर्यायमां समस्त जिनशासन आवी
जाय छे. विषय अने विषयी अभेद छे,
एटले विषयरूप–ध्येयरूप शुद्धआत्मा, अने
तेने विषय करनार शुद्धनय, ए बंने अभेद
थया छे तेथी शुद्धनयने आत्मा ज कह्यो.
शुद्धनय कहो, आत्मानी अनुभूति कहो के
शुद्धआत्मा कहो, ते एक ज छे. ए रीते
अनुभवमां एक आत्मा ज प्रकाशमान छे.
आवा आत्माने जाण्यो–अनुभव्यो तेणे
समस्त जिनशासनने जाण्युं, जिनदेवना सर्व
उपदेशनुं रहस्य तेणे जाणी लीधुं.