Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : २४९प आत्मधर्म : ७ :
‘आत्मरस’
(तेमां भरेला गंभीर भावो)
‘सामान्यनो आविर्भाव’ तेनो अर्थ
समजावतां गुरुदेवे गंभीरभावे कह्युं के–
अभेदस्वभाव तरफ झुकेली पर्याय, तेमां
सामान्यनो आविर्भाव छे, ने ते पर्याय
रागादिथी छूटी थयेली छे एटले खंडखंडरूप
नथी, पण स्वभाव साथेनी एकताना
अनुभवथी अखंड थई छे. एने जैनशासन
कहेवाय छे, एने जैनधर्म कहेवाय छे, एने ज
भावश्रुत अने मोक्षमार्ग कहेवाय छे. एने ज
अतीन्द्रियज्ञान अथवा शुद्धोपयोग कहेवाय
छे; एने ज आनंदनो स्वाद अने
वीतरागविज्ञान कहेवाय छे. अहो! केटला
गंभीर भाव छे!–आमां ज्ञाननो स्वाद छे, ने
आमां ज शांति छे. भेदज्ञान ने सम्यग्दर्शन
आमां समाय छे. आत्माना अनंता धर्मो
आमां समाय छे. आ ‘आत्मरस’ छे तेमां
‘सब–रस’ समाय छे.
(स. गा. १प प्रवचनमांथी)
अनुभूति ते आत्मा
आचार्यदेवे अनुभूतिने आत्मा ज
कह्यो, अंतरमां अभेद थयेली स्वानुभवरूप
निर्मळ पर्यायने ज आत्मा कही दीधो, केमके
ते पर्याय अभेद छे, अने ते
भावश्रुतपर्यायमां समस्त जिनशासन आवी
जाय छे. विषय अने विषयी अभेद छे,
एटले विषयरूप–ध्येयरूप शुद्धआत्मा, अने
तेने विषय करनार शुद्धनय, ए बंने अभेद
थया छे तेथी शुद्धनयने आत्मा ज कह्यो.
शुद्धनय कहो, आत्मानी अनुभूति कहो के
शुद्धआत्मा कहो, ते एक ज छे. ए रीते
अनुभवमां एक आत्मा ज प्रकाशमान छे.
आवा आत्माने जाण्यो–अनुभव्यो तेणे
समस्त जिनशासनने जाण्युं, जिनदेवना सर्व
उपदेशनुं रहस्य तेणे जाणी लीधुं.
कोना जेवा थईशुं?
(आपणे तो वीरनां संतान छीए)
बंधुओ, आपणे गांधीजी जेवा के जवाहरजी जेवा नथी
थवुं....आपणे तो महावीर जेवा थवुं छे केमके आपणे वीरनां संतान
छीए. बहेनो, आपणे झांसी की राणी जेवा के ईंदिराबेन गांधी जेवा
नथी थवुं, आपणे तो ब्राह्मी–सुंदरी ने चंदना–सीता जेवा थवुं छे.
ते धर्मात्मा संतोनुं जीवन ए ज आपणो आदर्श छे.