Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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माता कहे छे बाळकने.....





एक बाळक पोतानी माता पासे अंतरनी केवी भावनाओ रजु करे छे ते आपणे
आत्मधर्म अंक ३०० मां वांच्युं. हवे एक आदर्श माता नानपणथी ज पोतानां बाळकोने
केवा उच्च संस्कारोनी शिखामण आपे छे? ते अहीं रजु करेल छे:–
(१) तुं आत्माने भूलीश नहि,
हिंसा कदी करीश नहि.
(२) तुं भगवानने भूलीश नहि,
खोटुं कदी बोलीश नहि.
(३) तुं गुरुस्तुतिने भूलीश नहि,
चोरी कदी करीश नहि.
(४) तुं शास्त्र ज्यां त्यां मूकीश नहि,
रात्रे कदी जमीश नहि.
(प) तुं सदा संतोषथी रहेजे,
ममता कदी करीश नहि.
(६) तुं सारी शिखामण मानजे,
एटलुं बराबर करजे.
(जैन बाळपोथी : पाठ २२)
(माताओ! आपनां बाळकोमां उच्च आदर्शोनुं सहेलाईथी सींचन करवा माटे
आवी शिखामणनो प्रयोग जरूर करवा जेवो छे. बाळकना जीवनमां माता द्वारा मळता
संस्कारनुं स्थान सौथी ऊंचुं छे.)