: मागशर : २४९प आत्मधर्म : १३ :
मोक्षने माटे कोनी सेवा करवी?
श्री जिनेश्वर भगवंतोए कहेला तत्त्वनुं, एटले के आत्माना स्वरूपनुं आ
एक महान रहस्य छे के, पोताने परमात्मा थवा माटे, मोक्ष पामवा माटे,
बहारमां कोई बीजानी सेवा करवी पडे–एवी पराधीनता नथी, मोक्षने माटे
जेनी सेवा करवानी छे ते सेव्य पण पोते ज छे; मुमुक्षु पोते पोताना
शुद्धस्वरूपनी सेवा करीने (एटले के तेना ज्ञान–श्रद्धा–अनुचरण करीने)
मोक्षदशा पामे छे.
पंच परमेष्ठी भगवंतोनी साची सेवा पण ए ज प्रकारे थई शके छे,–
केमके पंचपरमेष्ठी भगवंतो वीतराग छे, एटले तेमनी सेवा वीतरागभाववडे ज
थई शके; रागना सेवन वडे वीतरागनुं सेवन थई शके नहि. माटे आचार्य
भगवान ३१मी गाथामां कहे छे के तारे अरिहंतोनी परमार्थ सेवा करवी होय तो
अतीन्द्रिय थईने तारा शुद्धआत्माने अनुभवमां ले.
मोक्षार्थी जीवे ‘जीव–राजा’ नी (–उत्कृष्ट आत्मस्वरूपनी) सेवा कई रीते
करवी ते अहीं गा. १७–१८ मां गुरुदेव समजावे छे.
मोक्षार्थी जीवे आत्माने कई रीते साधवो? ते वात राजाना द्रष्टांतवडे आचार्यदेव
समजावे छे. (समयसार गा. १७–१८) सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे निर्मळ पर्याय,
ते ज आत्माना मोक्षनी सिद्धिनुं कारण छे, माटे धर्मात्माए सदाय ते दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनुं सेवन कर्युं. अने ते निर्मळ दर्शन–ज्ञान–चारित्र पर्यायो आत्मा साथे अभेद
छे, माटे परमार्थथी एक आत्माने ज सेववो–एम उपदेश छे. आमां क्यांय रागनुं सेवन
न आव्युं. अभेदथी कहो तो शुद्ध आत्माने सेववो, ने भेदथी–पर्यायथी कहो तो
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने सेववां,–आ ज मोक्षने साधवानी रीत छे. आ सिवाय बीजा
कोई उपायथी साध्यनी सिद्धि थती नथी.
जेम धननो अभिलाषी जीव राजानी सेवा करे छे, राजाने ओळखे छे, श्रद्धा