: १४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
करे छे ने तेने अनुसरे छे;–एम उद्यम वडे सर्व प्रकारे तेनी सेवा करीने राजाने रीझवे
छे, ने राजा तेने धन आपे छे. तेम मोक्षनो अभिलाषी मुमुक्षु जीव शुद्धचैतन्यराजाने
सेवे छे; त्रण जगतमां श्रेष्ठ, अनंती केवळज्ञानसंपदानो स्वामी एवो आ जीवराजा
छे;–राजते ते राजा–पोताना निजगुणोथी जे राजे–शोभे ते राजा; आवो चिदानंद
जीवराजा हुं ज छुं एम अंतरना यत्नपूर्वक बराबर ओळखीने श्रद्धा करवी ने पछी तेमां
ज लीन थवुं;–एम करवाथी जरूर मोक्ष सधाय छे; बीजी रीते मोक्ष सधातो नथी.
आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायना, के शुद्ध–अशुद्धना विकल्पो ज करवामां रोकाई
रहे, तो कांई आत्मा सधाय नहि एटले के अनुभवमां आवे नहि. श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र
के जे राग वगरनां छे, तेना वडे ज आत्मा अनुभवाय छे. आवो अनुभव ते ज
मोक्षमार्ग छे.
अहो, आत्मानी सेवा कई रीते करवी! तेनी आ अपूर्व वात छे. पोते पोतानी
सेवा कई रीते करवी? ते सेवा करतां जीवने आवड्युं नथी. परनी सेवा तो शुभराग
छे, ते कांई मुक्तिनुं साधन नथी; परनी सेवानी वात तो दूर रही, अहीं तो पोताना
आत्मामां पण ‘हुं एक छुं, अनेक छुं’ ईत्यादि रागमिश्रित विचारवडे पण आत्मानी
साची सेवा थती नथी; अंतर्मुख अवलोकनवडे सम्यक् ओळखाण–श्रद्धा अने एकाग्रता
वडे ज पोताना आत्मानी साची सेवा थाय छे; आत्मराजानी आवी सेवा ते ज मोक्षनुं
साधन छे; तेनो अहीं उपदेश छे. आवी सेवा ते परमधर्म छे. सेवा एटले आराधना;
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते आत्मानी सेवा छे.
जुओ, मोक्षने माटे कोनी सेवा करवी? कोनी सेवा करवाथी मोक्ष पमाय? ते
अहीं समजावे छे. शुद्धआत्माने जाणीने तेना सेवनथी मोक्ष पमाय छे. परना सेवनथी
के पुण्यना सेवनथी मोक्ष नथी पमातो. सम्यग्दर्शन पण शुद्धात्माना ज सेवनथी पमाय
छे, रागना सेवनथी नथी पमातुं; ए ज प्रमाणे सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र पण
शुद्धात्मानी सन्मुखतारूप तेनी सेवाथी पमाय छे, शुभरागथी ते पमाता नथी.
शुद्धआत्मानी आवी सेवा करे त्यारे तेणे ज्ञानीनी खरी सेवा करी कहेवाय.
अज्ञानी जीवो आत्माने परभावोथी जुदो ओळखता नथी, ने ज्ञानथी अन्य
एवा परभावो साथे एकमेकपणे मानीने अशुद्धआत्माने ज सेवे छे, शुद्धआत्मानी सेवा
करतां तेने आवडती नथी. श्रीगुरु तेने भेदज्ञान करावीने शुद्धात्मानुं स्वरूप समजावे छे
के भाई, तारो आत्मा सर्वे परभावोथी जुदो ज्ञानमात्र ज छे; ज्ञान ज