Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : १७ :
पहेलां ज्ञान कर के हुं तो ज्ञानना अनुभवरूप छुं. देह हुं नहि, रागादिभावो हुं
नहि, ज्ञानपणे अनुभवमां आवे छे ते ज हुं छुं.–आम ज्ञाननी अनुभूति ते आत्मानी
अनुभूति छे; एवा ज्ञानस्वरूपे पोते पोताने ओळखवो.–आ ओळखाणनी साथे ज
श्रद्धा अने अनुभव भेगां ज छे. आनंदमय आत्माना अनुभवसहित आवां ज्ञान–श्रद्धा
थाय छे. आत्माने यथार्थस्वरूपे जाणतां ने श्रद्धामां लेतां तेनो आनंद पण भेगो
अनुभवमां आवे छे. अरे, आत्माना आनंदनो आवो मार्ग तेने ख्यालमां तो ल्यो.
आनंदनो मार्ग कहो के मोक्षनो मार्ग कहो; मोक्ष एटले पूर्ण आनंद; तेनो मार्ग पण
आनंदरूप छे.
अरिहंतनुं स्वरूप जाणतां आत्मानुं शुद्धस्वरूप जणाय छे; अरिहंतना जेवा
शुद्धद्रव्य–गुण छे तेवा ज मारामां छे–एम लक्षमां लईने स्वसन्मुख थयो त्यां
पर्याय पण शुद्ध थई; त्यारे अरिहंत जेवा पोताना आत्माने ओळख्यो एटले
सम्यग्दर्शन थयुं. अज्ञानीने शुद्ध स्वरूप कई रीते समजाववुं? एटले तेने
अरिहंतनो आदर्श आपीने शुद्धस्वरूप समजाव्युं के भाई! जो, आ अरिहंतनो
आत्मा जेवो शुद्ध छे ने! तेवो ज शुद्ध तारो आत्मा छे. आवो आत्मा लक्षमां लईने
तेनी निःशंक श्रद्धा करी, ने पछी अत्यंत धीरजथी तेमां ज परिणाम एकाग्र करीने
लीन थयो, ते मोक्षमार्ग छे.
आवा ज मार्गवडे अनंता तीर्थंकरभगवंतो सिद्धि पाम्या छे, ने आवो ज
मार्ग तेमणे जगतने उपदेश्यो छे. ते ज मार्गने सीमंधरभगवान पासेथी सांभळीने
अने जाते अनुभवीने आ समयसारमां कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रसिद्ध कर्यो छे. हे जीवो!
तमे तमारा अनुभूतिस्वरूप जीवराजाने ओळखीने तेनी श्रद्धा करो ने तेमां ज
एकाग्रतारूप आचरण करो.–एम करवाथी परमआनंदरूप मोक्षनी सिद्धि थशे.
जीवराज एम ज जाणवो, वळी श्रद्धवो पण ए रीते,
एनुं ज करवुं अनुचरण पछी यत्नथी मोक्षार्थीए.