Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
सम्यग्दर्शन थाय छे त्यारे....
जुओ, आ सम्यग्दर्शननो मंत्र छे.....श्री गुरुओए सम्यग्दर्शन
माटे भव्य जीवोने आ शुद्धनयरूप मंत्र आप्यो छे; आ मंत्र वडे जरूर
सम्यग्दर्शन थाय छे. अने ज्यारे सम्यग्दर्शन थाय छे त्यारे.....शुं थाय
छे? ते आ समयसार कलश १० उपरनुं प्रवचन आपने कहेशे.
सम्यग्दर्शनना उपोद्घातनो आ श्लोक छे. सम्यग्दर्शन केवा आत्माने प्रकाशित
करे छे? ते कहे छे–
‘आत्मस्वभावं परभावभिन्नं’–परभावोथी भिन्न एवा आत्मस्वभावने
अनुभवमां लेतुं सम्यग्दर्शन प्रगटे छे. ‘आपूर्णं आद्यंतविमुक्तं एकम्’–आदिअंतथी
रहित ने पोताना गुण–पर्यायोथी परिपूर्ण एवा एक शुद्ध अभेद आत्माने शुद्धनय देखे
छे, ने ते ज सम्यग्दर्शन छे. आवा शुद्धआत्माने अनुभवमां लेतां ज समस्त संकल्प–
विकल्पोनी जाळ विलय पामे छे– ‘विलीन संकल्प–विकल्पजालं’ जेमां कोई संकल्प–
विकल्प नथी एवा परिपूर्ण शुद्ध आत्मस्वभावने परभावोथी भिन्न एकपणे शुद्धनय
प्रकाशे छे (प्रकाशयन् शुद्धनयोभ्युदेति) एटले के ज्ञानपर्याय अंतर्मुख थईने अभेदपणे
आवा आत्माने अनुभवे छे. ज्यारे सम्यग्दर्शन थाय छे त्यारे तेमां आवो आत्मा
अनुभवाय छे. आवी निर्विकल्प अनुभूतिपूर्वक सम्यग्दर्शन थाय छे.
जुओ, आ केवो आत्मा अनुभवमां लेवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे तेनी वात छे.
बधाय सम्यग्द्रष्टि जीवो अंतरमां आवा पोताना आत्माने देखे छे–अनुभवे छे; अने ए
ज वीतरागना धर्मनी शरूआत छे. आवा आत्माने शुद्धनयथी अनुभवमां लीधा वगर
वीतरागना मार्गनी शरूआत थती नथी.
– ‘आवो मार्ग वीतरागनो...भाख्यो श्री भगवान’
भाई, वीतरागभगवाने कहेलो वीतरागमार्ग शुं छे–तेनी ओळखाण तो कर.
शुद्धआत्माने देखवो–अनुभववो तेने भगवाने जिनशासन कह्युं छे. ते जिननी आज्ञा
छे; ते ज सम्यग्दर्शननी रीत छे.