Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : १९ :
हे भाई! तारे सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं छे ने? तो सन्तोनी आ शिखामण छे
के तारा आत्माने परभावोथी (देहथी ने रागथी) भिन्न, ने स्वभावथी परिपूर्ण
एकरूप अंतरमां शुद्धनयवडे देख. रागने संकल्प–विकल्पने आत्मा तरीके न देख,
तेनाथी आत्माने जुदो जाण. पर्यायना भेदमां पण न अटक. अखंड शुद्ध आत्माने
देख. एवा आत्माने देखतां अपूर्व आनंदना अनुभव सहित सम्यग्दर्शन ने
सम्यग्ज्ञान थशे.
जेने मोटो किंमती हीरो लेवो होय तेणे ते हीरो ओळखवो जोईए; हाथमां
कोलसो लईने माने के ‘आ हीरो छे’–तो हीरो हाथमां न आवे; तेम जेने
‘चैतन्यहीरो’ लेवो छे, जेने सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं छे–तेणे रागना डाघ वगरनो
शुद्ध चैतन्य हीरो केवो छे ते ओळखवो जोईए. रागादि संकल्पविकल्पने अनुभवे
अने एम माने के ‘आवो आत्मा छे’–तो साचो चैतन्यहीरो तेने न मळे; भेदना
ने अशुद्धना अनुभवथी सम्यग्दर्शन न थाय. ज्ञानदर्शनादि गुणोना के पर्यायोना
भेदने न देखतां पोताना अनंत ज्ञानादि स्वभावोथी अभेद एकरूप आत्माने
सम्यग्दर्शन देखे छे. अनंत गुणोने अनंत भेदना विकल्परूपे न देखतां, एकाकार
एक वस्तुने सहज स्वभावरूपे धर्मी पोताने अनुभवे छे, एटले ते अनुभवमां
एकपणुं प्रकाशे छे.
जुओ, आ सम्यग्दर्शननो मंत्र छे. श्री गुरुओए सम्यग्दर्शन माटे भव्य जीवोने
आ शुद्धनयरूप मंत्र आप्यो छे; आ मंत्र वडे जरूर सम्यग्दर्शन थाय छे.
* सत्कार्योनी अनुमोदना करनार ते
सत्कार्य तरफ जशे. पण सत्कार्योनी ईर्षा करनार
कदी सत्कार्य तरफ नहि जाय.
* कोई ईर्षा करे तेथी गभराईने तारा