Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म मागशर : २४९प
गुरुदेव कहे छे: धन्य मारग.....ने धन्य ध्येय
प्रवचनसारनी आ ८०–८१–८२ मी गाथाना भावो
गुरुदेवने केटला प्रिय छे, ते गुरुदेवना प्रमोदभरेला उपरोक्त
उद्गारोथी ख्यालमां आवे छे. गुरुदेव कहे छे के त्रणकाळना
तीर्थंकरोए स्वाश्रित निर्वाणमार्ग जे रीते साध्यो ने जगतने पण
उपदेश्यो, ते निर्वाणमार्ग कुंदकुंदाचार्यदेवे आ गाथाओमां प्रसिद्ध कर्यो
छे. अहो! धन्य ए मारग! ने धन्य ध्येयरूप शुद्धआत्मा.
संतो कहे छे के आवा मार्गमां ने आवा ध्येयमां अमारी
मतिने व्यवस्थित करीने, अमे ते मार्गने साधी ज रह्या
छीए....मोक्षने साधवानुं कृत्य कराय छे.
हे जीवो! तमे पण मोक्षने माटे आ ज मार्गनो आश्रय
करो....मोक्षने माटे सर्वे तीर्थंकरोए सेवेलो ने उपदेशेलो आ एक ज
मार्ग छे....बीजो मार्ग नथी.
– ‘आवो मार्ग वीतरागनो, भाख्यो श्री भगवान.’
अर्हन्त सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे;
उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत थया; नमुं तेमने.
आचार्यदेव प्रमोदथी कहे छे के अहो, ते तीर्थंकरभगवंतोने नमस्कार हो–के जेमणे
शुद्धोपयोगवडे कर्मक्षय थवानो मार्ग उपदेश्यो अने पोते ते ज मार्ग साधीने मुक्ति
पाम्या. जुओ, अहीं मोहक्षयनो उपदेश करनारा अरिहंतोने नमस्कार कर्या तेमां
पोतानी जवाबदारी छे, –एटले के पोते पण तेवा मोहक्षयना मार्गमां शुद्धोपयोगवडे
परिणमी ज रह्या छे,–एवा भावनमस्कार छे. णमो अरिहंताणं खरूं