Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : २१ :
धन्य ते मारग.......ने धन्य ध्येय
त्यारे कहेवाय के ज्यारे अरिहंत जेवो पोतानो शुद्धआत्मा अनुभवमां ल्ये. तेम अहीं
कहे छे के अहो, जे आ शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्ग छे ते ज सर्वे तीर्थंकरभगवंतोए सेवेलो
ने उपदेशेलो मार्ग छे, अने अमे पण शुद्धोपयोग प्रगट करीने तीर्थंकरोना ते ज मार्गे
जई रह्या छीए. तीर्थंकरोनो अने अमारो एक ज मार्ग छे; मोक्षना बे मार्ग नथी.
साधकदशानो काळ असंख्य समयनो ज होय; अत्यार सुधीनो अनंतकाळ वीत्यो
तेमां अनंता जीवो साधक थईने मोक्ष पाम्या. तेमां अनंताजीवो तीर्थंकर पण थया. ए
बधाय जीवो कई रीते मोक्ष पाम्या? ने केवो उपदेश आप्यो? तो कहे छे के अरिहंतो
जेवा पोताना शुद्धात्मानी ओळखाणवडे प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करीने, अने पछी
शुद्धोपयोगवडे तेमां लीनता वडे रागद्वेषनो क्षय करीने, सर्वे अरिहंतोए मुक्ति प्राप्त
करी, अने दिव्यध्वनिवडे समवसरणमां श्रोताजनोने पण बधाय तीर्थंकरोए ए ज
उपदेश आप्यो. अहो, आवो उत्तम मार्ग भगवंतोए बताव्यो. तेमने नमस्कार हो.
जुओ, अनंता तीर्थंकरोए शुं कर्युं ने शुं कह्युं–ते वात आचार्यभगवाने अहीं
प्रसिद्ध करी.