: २२ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
प्रश्न:– कुंदकुंदाचार्य तो हमणां बे हजार वर्ष पहेलां थया, ने ए वखते तो
पंचमकाळ हतो, अहीं कोई तीर्थंकर तो न हता;–तो बधाय तीर्थंकरोए शुं कर्युं ने शुं
कह्युं–ते वातनी तेमने केवी रीते खबर पडी?
उत्तर:– एक तो तेमणे विदेहक्षेत्रे बिराजमान तीर्थंकर श्री सीमंधर भगवानना
दर्शन साक्षात् कर्या हता, तेमनी वाणी पण साक्षात् सांभळी हती; बीजुं पोताना
आत्मामां शुद्धोपयोगरूप निजवैभववडे तेमणे अंतरमां मोक्षमार्ग साक्षात् अनुभव्यो
हतो. ते अनुभवेला मार्गनी निःशंकताथी कहे छे के मोक्षनो मार्ग त्रणे काळे आवो ज छे,
त्रणेकाळना जीवोने माटे आ एक ज मोक्षमार्ग छे, बीजो मार्ग नथी.
भगवाने जे मोक्षमार्ग उपदेश्यो ते कोई कल्पनाथी नथी उपदेश्यो, पण पोते जाते
अनुभवेलो मार्ग उपदेश्यो छे; जे मार्गे पोते मोक्ष साध्यो ते ज मार्ग उपदेश्यो. ए ज
रीते (आचार्यदेव कहे छे के) अमे पण स्वानुभवथी ते मार्ग जोयो छे; अंतरमां देखेलो
ने अनुभवेलो ते मार्ग अमे अहीं प्रसिद्ध कर्यो छे. अहो, आ मार्ग कोई साधारण नथी;
आ तो अनंता तीर्थंकरो–केवळीभगवंतोए सेवेलो ने उपदेशेलो मार्ग छे, चार
ज्ञानधारक गणधरोए जे झील्यो छे, ईन्द्रो अने चक्रवर्तीओ अत्यंत भक्तिथी जे मार्गने
आदरे छे; सर्वे मुमुक्षुओने माटे त्रणेकाळे आ एक ज मोक्षमार्ग छे.
(गुरुदेव कहे छे–वाह, धन्य ए मार्ग!)
अहा, अनंता तीर्थंकरभगवंतो जेना ज्ञानमां बेठा, तेनुं ज्ञान तो रागथी छूटुं
पडीने मोक्ष तरफ चाल्युं, हवे ते ज्ञानमां अनंत भव करवानुं होय ज नहि; जे ज्ञानमां
भवरहित भगवाननी प्रतीत बेठी ते ज्ञानमां ‘मारे अनंतभव हशे’ एवी शंका होय
नहि, तेने अल्पभव ज होय, ने भगवानना ज्ञानमां पण एम ज देखाय.
अरे, जगतने केवळज्ञाननी खबर नथी; केवळज्ञानने प्रतीतमां लेनारा
मतिश्रुतज्ञाननी केटली ताकात छे तेनी पण खबर नथी. ए मतिश्रुतज्ञान तो
केवळज्ञाननी जातना थया, केवळज्ञानने भव होय तो एने भव होय! ए तो भवथी ने
भवना कारणथी (–रागथी) जुदुं पडीने मोक्षनुं साधक थयुं, वीतरागविज्ञान थयुं.
केवळज्ञान ते पूर्ण वीतरागविज्ञान ज छे, ने आ साधकनुं ज्ञान भले अल्प होय छतां ते
पण वीतरागविज्ञान ज छे. आवा ज्ञानमां ज सर्वज्ञनी साची प्रतीत थई छे.
“अनंता तीर्थंकरो थई गया, अनंता थशे” एवो स्वीकार करनार ज्ञाननी
ताकात केटली? रागमां अटकेलुं ज्ञान ते नहि कबुली शके, केमके ते तो अरिहंतने
ओळखतुं ज नथी. अरिहंतने ओळखतां शुद्धआत्मा ओळखाय; अने जे ज्ञाने