Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : २३ :
अंतर्मुख थईने शुद्धात्माने ओळख्यो ते ज्ञान ज पूर्ण शुद्धताने पामेला अनंता
तीर्थंकरोनो यथार्थ स्वीकार करी शके.
भगवान मोक्ष पाम्या छे ने भगवाननी वाणी मोक्षमार्ग देखाडनारी छे.
भगवाननो उपदेश मोक्षमार्गने ज पोषनारो छे. शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्ग–तेनो ज
उपदेश भगवाने कर्यो छे. –चारे अनुयोगना उपदेशमां आवुं ज तात्पर्य छे. तेने बदले
रागने मोक्षनुं साधन मनाववानो आशय जे काढे ते जीव भगवानना उपदेशने
समज्यो ज नथी, भगवानने तेणे ओळख्या नथी, भगवान केवा मार्गे मोक्ष पाम्या
तेनी तेने खबर नथी. ने भगवाने केवो मार्ग बताव्यो तेनी पण तेने खबर नथी. अहीं
तो आचार्यदेव पोते मोक्षमार्गने अनुभवीने कहे छे के आवो ज मार्ग बधाय
भगवंतोए सेव्यो छे, ने उपदेशमां पण आवो ज मार्ग बताव्यो छे.
“आवो मार्ग वीतरागनो.....भाख्यो श्री भगवान”
आवो छे तीर्थंकरोनो मार्ग!
धन्य ए मार्ग!
नमस्कार हो ए मार्गने...अने तेना प्रणेता भगवंतोने!
चालो जईए...आपणे पण ए भगवंतोना मारगे.
“सोनानो भाव शुं?”
एक दिवस चर्चानी शरूआतमां गुरुदेवे कह्युं–मारे एक प्रश्न पूछवो छे!
सभाजनो आश्चर्यथी प्रश्न सांभळवा आतूर बन्या, के गुरुदेव शुं पूछशे?
त्यां तो गुरुदेवे पूछ्युं–‘सोनानो भाव शुं छे?’
घडीभर तो सौ विचारमां पडी गया.
तमेय विचारमां पडी गया छो?–तो
‘सोनानो भाव’ जाणवा माटे जुओ पानुं : २प