Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
आत्मा केवडो? अनंतगुण
जेवडो...
गुण केवडो?
अनंती पूर्ण निर्मळपर्याय प्रगटे
एवडो.
ज्ञाननी पूर्णपर्याय केवळज्ञान,
एवी अनंत केवळज्ञान पर्यायो थवानुं
सामर्थ्य एक ज्ञानगुणमां.
चारित्रनी पूर्णपर्याय वीतरागता,
एवी अनंत वीतरागपर्यायो थवानुं
सामर्थ्य एक चारित्रगुणमां.
आम चारित्रनी
वीतरागता अने ज्ञाननी
विज्ञानता,–एम बे गुणथी ज आत्माने
वीतरागविज्ञानपणुं प्राप्त छे, ने तेनाथी
आत्माने पूज्यता–महानता–मंगळपणुं छे.
(मंगलमय मंगलकरण वीतरागविज्ञान,–)
(तीनभुवनमें सार वीतरागविज्ञानता)
ज्यां चारित्र अने ज्ञान ए बे गुणनी
अवस्थाथी पण आत्माने आवी वीतराग–
विज्ञानता प्राप्त छे, त्यां अनंतगुणो ने तेनी
अनंती निर्मळपर्यायोवडे आत्मानी
महानतानी तो शी वात!
आवा अनंत महिमावंत
वीतरागविज्ञानघन आत्मानो अनुभव ते
जैनशासन छे. आवडो मोटो आत्मा ते
जैनशासननो आत्मा छे.
जे ज्ञानमां आवा आत्मानो
अनुभव थयो ते अंतर्मुखज्ञान (भावश्रुत)
पोते जिनशासन छे. ते भावश्रुतज्ञान पोते
आत्मा ज छे, ते आत्मा साथे अभेद छे माटे
ते आत्मा ज छे. आवा आत्मानी अनुभूति
जे जैनशासननी अनुभूति; अने ते ज
मोक्षमार्ग.
भाई! तारो आत्मा, तुं पोते
आवो छो....अचिंत्य गंभीरता तारा
स्वभावमां भरेली छे. तेने अंतरमां
लक्षगत कर....तो तने जैनशासन समजाय.
आवा आत्माने पोताना अंतरमां लक्षमां
लीधा वगर जैनशासन समजाय नहि.
अहो! शुद्ध आत्माना अनुभवमां आखुं
जैनशासन समाई जाय छे.
जय हो...आवा जैनशासननो!
नमस्कार हो...आवुं जैनशासन देखाडनारा
वीतरागविज्ञानी संतोने.