Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : २प :
कारतक वद चोथे रात्रे तत्त्वचर्चा वखते गुरुदेवे पूछ्युं ‘सोनानो भाव शुं?’
श्रोताए जवाब आप्यो–सोनानो भाव हमणां शुं चाले छे ते खबर नथी.
बीजा भाई कहे के आजे छापामां भाव वांच्या नथी.
गुरुदेव कहे–सोनानो भाव तो सोनामां होय, सोनानो भाव कांई सोनाथी जुदो
न होय.
सोनानां रजकणोमां जे वर्ण–गंध–रस–स्पर्श छे ते ज सोनानो भाव छे. भाव
एटले वस्तुना गुण.
जेम आत्मानो भाव शुं? के ज्ञान–दर्शन–चारित्र वगेरे अनंतगुणो ते ज
आत्मानो भाव छे. अरे, तारा आत्मानो भाव शुं तेनी पण तने खबर नथी?
दरेक वस्तुना गुण ते ज तेनो स्वभाव छे.
आत्मानो भाव तो अनंत ज्ञानादिरूप त्रिकाळ छे. क्षणिक रागादि विकार ते
आत्मानो खरो भाव नथी, ते रागभाववडे आत्मानी खरी किंमत अंकाती नथी. वस्तुने
तेना साचा भाववडे ओळखवी जोईए.
जेम लाख रूा. नी किंमतनो हीरो होय ने तेनी किंमत पांच पैसा टांके–तो तेने
हीराना भावनी खबर नथी. तेम चैतन्यहीरो अनंत ज्ञानसम्पन्न, तेनी किंमत राग
जेटली टांके तो तेने चैतन्यहीराना साचा भावनी खबर नथी; आत्मानो भाव,
आत्मानो गुण तेणे जाण्यो नथी. वस्तुनो ‘भाव’ जाण्या वगर वस्तुनी प्राप्ति थाय
नहि.
दरेक वस्तुमां पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव होय छे, ने तेनावडे ते वस्तु
ओळखाय छे.
आत्मा गुण पर्यायने धारण करनार द्रव्य छे.
असंख्य अरूपी–चैतन्यप्रदेश ते तेनुं क्षेत्र छे.