: २६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
वर्तमान जे पर्यायमां ते वर्ते छे ते तेनो काळ छे.
ज्ञानादि जे अनंतगुणो ते आत्मानो भाव छे.
आ रीते “सोनाना भाव” ना द्रष्टान्ते गुरुदेवे आत्माना भाव समजाव्या हता.
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घणीवार लोको कहे छे के कोई अमारो भाव पूछतुं नथी!
पण भाई! तें पोते कदी तारो ‘भाव’ पूछ्यो छे? तारो पोतानो ‘भाव’ शुं छे
तेनी तने खबर छे? हजी तने ज तारा भावनी खबर नथी,–पहेलां तुं तो तारा भावने
जाण. बीजा भले पूछे के न पूछे, पण तारो भाव तो तारामां छे. अनंत ज्ञान–दर्शन–
आनंदना भावो तारामां भर्या छे–तेनो अपार महिमा छे. जडभावथी जुदो ने
रागभावथी पण जुदो, परम आनंदथी भरेलो तारो चैतन्यभाव छे.–ए ज तारो साचो
भाव छे.
पुण्यवडे शुभरागवडे तुं आत्मा लेवा मांगीश, तो ते खोटो भाव छे, आत्मानो
ते साचो भाव नथी.
ज्ञानरूप भाव ते ज आत्मानो साचो भाव छे, ते भावद्वारा आत्मानी प्राप्ति
(अनुभव) थाय छे.
आवा तारा आत्मभावने तुं जाण!
अमर थवानी सहेली रीत
तमारे अमर थवुं छे?....................हा.
तो, जे कोई नाशवंत–मृत्यु पामनार पदार्थो छे तेनाथी तमारी भिन्नता
जाणो....बस, पछी तमारुं मृत्यु कदी नहि थाय. अमरपणुं प्राप्त थई जशे.–केमके
आत्मा तो अमर छे, ने जे मरे छे ते आत्मा नथी. बाकी, मरे एवी वस्तु
साथे जो मित्रता राखशो तो तमे अमर क्यांथी थई शकशो?