Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : २७ :
साचुं सुख ने तेनुं साचुं साधनन
(प्रवचनसर गथ ६९ – ७०)
* शुद्धोपयोग ते तो ज्ञानथी अने सुखथी अविरुद्ध छे. पण शुभराग ते तो
ज्ञानथी अने सुखथी विरुद्ध छे. माटे अतीन्द्रिय सुखना अभिलाषी जीवे शुभराग
छोडवा योग्य छे अने शुद्धोपयोग ज अंगीकार करवा योग्य छे.
* शुभोपयोगनुं साध्य तो ईन्द्रियसुख छे, ईन्द्रियसुख कहो के संसार कहो; ते
शुभोपयोगवडे सधाय छे, पण शुभोपयोग वडे कांई साचुं सुख के मोक्ष नथी सधातो.
मोक्ष तो शुद्धोपयोग वडे ज सधाय छे. शुद्धोपयोगनुं साध्य अतीन्द्रिय सुखरूप मोक्ष;
अने शुभोपयोगनुं साध्य ईन्द्रियसुखरूप संसार.
* कोई कहे के–वीतरागी देव–गुरुनी भक्तिना शुभरागमां अमारो हेतु तो
मोक्षनो छे! तो कहे छे के भाई! राग कदी मोक्षनो हेतु थई शकतो नथी. शुभ रागने
हेतु बनावीने तेना वडे मोक्ष साधवा मांगे तेने मोक्षना साचा हेतुनी खबर नथी.
रागने मोक्षनो हेतु मानतां मोक्षनी ने मार्गनी श्रद्धामां विपरीतता थाय छे. मोक्षनुं
साचुं कारण तो राग वगरनो शुद्ध उपयोग ज छे, तेने ओळखे तो ज मोक्षनी ने तेना
मार्गनी साची श्रद्धा थाय.
* अरे, हजी तो मोक्षनो साचो हेतु शुं छे तेने पण जीवो ओळखता नथी.
आचार्यदेव कहे छे के भाई! जे शुभने तुं अज्ञानथी मोक्षनुं साधन माने छे ते शुभ वडे
तो ईन्द्रियसुखनी सामग्री सधाय छे, कांई मोक्ष के अतीन्द्रियसुख तेना वडे सधातुं नथी.
मोक्षनुं परमसुख शुद्धोपयोग वडे ज सधाय छे. आ रीते साचा साधनने ओळख्या
वगर साध्यनी सिद्धि थाय नहि.
* मोक्षना साचा साधनने ओळख्या वगर, बहारना बीजा कल्पित साधनो
अनंत वार जीवे कर्या, पण तेनाथी जराय सुख न सधायुं, तेनाथी मात्र बहारनी
अनुकूळ सामग्री मळी एटले के ईन्द्रियविषयो मळ्‌या ने तेमां सुख मानीने संसारमां ज
जीव रखड्यो अनुकूळ विषयो तरफनुं वलण ते पण दुःख ज छे. जगत जेने सुख कल्पे
छे एवुं ईन्द्रियसुख ते खरेखर तो दुःख ज छे, स्वसन्मुख थईने चैतन्यनी परम शांतिनुं
वेदन ते ज साचुं सुख छे, ने तेनी प्राप्ति शुद्धोपयोग वडे ज थाय छे.