Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प

गुरुदेवने अत्यंत प्रिय एवी ८०–८१–८२मी गाथा ज्यारे
प्रवचनमां वंचाती होय त्यारे, अनंता तीर्थंकरोना स्वाश्रयरूप
उपदेशनो धोध जाणे एक साथे संभळातो होय एम अतिशय प्रमोदथी
तेओ खीली ऊठे छे...अने गुरुदेवना श्रीमुखथी ते सांभळतां एवा
भाव उल्लसे छे के वाह! अरिहंतदेवनो आवो सुंदर मार्ग! ते मने
प्राप्त थयो. अरिहंतोना आ मार्गमां मोहने जीतवो साव सुगम छे.
अरिहंतभगवान–के जेमणे शुद्धोपयोगना बळवडे मोहने जीती लीधो
छे ने आत्मानी पूर्ण शुद्धता प्रगट करी छे, तेमने आदर्शरूप बतावीने
८०मी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के आवा अरिहंत भगवानना द्रव्य–
गुण–पर्यायने ओळखतां तारा आत्मानुं शुद्धस्वरूप पण ओळखाशे,
केमके आत्मानुं परमार्थस्वरूप अरिहंत जेवुं ज छे. जेणे संसारनी चार
गतिमां न अवतरवुं होय, ने अरिहंतपणे अवतरवुं होय,
सर्वज्ञदशापणे ऊपजवुं होय, तेओ अरिहंत जेवा ज निजस्वरूपने
ओळखीने तेमां पर्यायने अंतर्मग्न करो.–आम करवाथी सम्यग्दर्शनादि
थशे, ने मोहने जीताशे. अरिहंतोना मार्गने अनुसरवानी आ रीत छे;
ने आ ज साचुं णमो अरिहंताणं छे.
*
जे जाणतो अर्हंतने गुण द्रव्य ने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे.