Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : २९ :
*
जेवा
अरिहंत
तेवो ज
हुं
*
अरिहंतने
जाणतां
आत्मा
जणायछे.
भगवान अरिहंतदेवनी साथे मेळवीने आत्मानुं स्वरूप समजावे छे. अरिहंत जेवुं
शुद्ध आत्मानुं स्वरूप जाणतां जीवने जरूर सम्यग्दर्शन थाय छे ने मोहनो क्षय थाय छे.
‘णमो अरिहंताणं’ साचुं क्यारे कहेवाय? के अरिहंतदेव जेवा पोताना शुद्ध
आत्माने जाणे त्यारे.
परमार्थे आ आत्मा अरिहंतभगवान जेवो ज छे, बंनेना शुद्धस्वरूपमां कांई फेर
नथी. एटले अरिहंतने जाणतां पोतानो शुद्ध आत्मा पण जणाय छे.
अरिहंतनुं स्वरूप ओळखे नहि, आत्मानुं शुद्धस्वरूप ओळखे नहि,–तो तेणे
अरिहंतने नमस्कार कई रीते कर्या?
अरिहंत तो शुद्धआत्मा छे. तेनुं द्रव्य शुद्ध चेतनारूप, तेना गुण शुद्ध चैतन्यरूप,
अने तेनी पर्याय पण शुद्ध चेतनारूप,–तेमना द्रव्य–गुण–पर्यायमां क्यांय राग नथी, आवा
सर्व प्रकारे शुद्ध अरिहंतना आत्माने जाणतां जीव पोताना आत्मामां पण रागथी भिन्न
शुद्धचैतन्यस्वरूपने जरूर ओळखी ल्ये छे. ने आवी ओळखाण थतां पर्याय अंतर्लीन
थईने सम्यग्दर्शन थाय छे; पछी तेने मिथ्यात्व रहेतुं नथी. पर्याय तो अंतरमां शुद्धआत्मा
तरफ वळी गई पछी मोह शेमां रहे? आ रीते मोहनी सेना जीताय छे.
* अरिहंतने राग छे?..........ना;
तो मारा शुद्धस्वरूपमां पण राग नथी.
*अरिहंतने पूरुं ज्ञान ने वीतरागता छे.
तो मारुं स्वरूप पण केवळज्ञान ने वीतरागता छे.