: ३० : आत्मधर्म मागशर : २४९प
जेम
वंदित्तु सव्वसिद्धे द्वारा सिद्ध भगवानने साध्यरूपे आत्मामां स्थाप्या
एटले के जेवा सिद्ध तेवो हुं–एम सिद्धसमान पोतानुं शुद्धस्वरूप ओळखी लीधुं, ने
साधकभाव शरू थयो.
तेम अहीं अरिहंतदेवना स्वरूपनी ओळखाण द्वारा, तेमना जेवो ज पोतानो
शुद्धआत्मा छे–एम निर्णय करतां सम्यग्दर्शन थाय छे, ने मोहनो क्षय थाय छे.
अहा, कुंदकुंदाचार्यदेवनी शैली ज कोई अपूर्व अलौकिक छे. चारेकोरथी वात करीने
अंदर शुद्धआत्मामां लई जाय छे.
द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप आत्मा वस्तु छे. अरिहंत भगवानने ते द्रव्य–गुण–
पर्याय त्रणेय शुद्ध छे; तेने जे खरेखर जाणे छे, एटले के शरीरवडे के समवसरणादि
विभूतिवडे नहि पण तेमना द्रव्य–गुण–पर्याय वडे अरिहंतदेवनुं स्वरूप जाणे छे, ते
शुद्धआत्मानुं स्वरूप जाणे छे एटले खरेखर पोताना आत्मानुं परमार्थ स्वरूप ते जाणी
ल्ये छे;–केमके आ आत्मानुं परमार्थ स्वरूप पण अरिहंत जेवुं ज छे, तेमां कांई तफावत
नथी; माटे एकनुं स्वरूप जाणतां बीजानुं स्वरूप पण जणाई जाय छे. आवुं स्वरूप
जाण्या वगर शुद्ध उपयोग थई शके नहि. आवुं शुद्ध स्वरूप समजे तो ज शुद्धोपयोग
थाय, ने तो ज मोहनो क्षय थाय.–आवा उपायथी ज तीर्थंकरो मोहक्षय करीने मुक्ति
पाम्या छे, ने आवो ज उपदेश जगतने उपदेश्यो छे.
पोतानो आत्मा अरिहंत जेवो शुद्ध जाण्यो एटले हवे अरिहंतदेव जेवी पूर्ण दशा
प्रगट करवा माटे स्वसन्मुख पोताना आत्मामां ज जोवानुं रह्युं, केमके पोतानो पूर्ण आत्मा
छे तेमांथी ज पोतानी पूर्ण पर्याय आवे छे, बहारथी नथी आवती; रागमांथी नथी
आवती; अरिहंतमां रागादि परभावो नथी, एटले अरिहंत जेवो पोताने जाणतां पोतामां
पण रागादि परभावोनुं कर्तृत्व न रह्युं. साधक थईने ते पण सर्वज्ञपद लेवा तरफ चाल्यो.
आचार्यदेव कहे छे के आ रीते शुद्धात्माने प्रतीतमां लईने मोह उपर विजय
मेळववा माटे में कमर कसी छे. जेम बहादुर पुरुष शत्रुने जीतवा माटे कमर कसे तेम