Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
बीजा कोईनी पक्कड (ममत्व) न होवाथी ते ज अपरिग्रह छे. आ रीते वीतरागभावमां
पांचे महाव्रत समाई जाय छे, ने तेना अवलंबन वडे जीव संसारने तरी जाय छे.
जुओ, आ भगवाननो उपदेश! वीतराग भाव ते ज भगवानना उपदेशनो
शुद्धसार छे. जे जीवो आवो उपदेश झीलीने तरे छे ते बहुमान अने विनयथी कहे छे के
अनंतगुणस्वरूप जाणीने तेमां लीन थवुं ते मोक्षमार्ग छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
पोताना आत्माना आश्रयथी थाय छे ने तेना वडे ज आत्मा पोते पोताने तारे छे. जेम
नौकानो पोतानो तरवानो स्वभाव छे, तेम निर्विकल्प चिदानंद प्रभु आत्मा पोते
तरवाना स्वभाववाळो छे, रत्नत्रय वडे ते पोताने तारे छे.
आत्मानुं सम्यग्दर्शन तरवाना स्वभाववाळुं छे. ते पोताना आत्माना आश्रये
पोताथी ज थाय छे.
आत्मानुं सम्यग्ज्ञान तरवाना स्वभाववाळुं छे ते पोताना आश्रये पोताथी ज
थाय छे.
आत्मानुं सम्यक्चारित्र तरवाना स्वभाववाळुं छे, ते पोताना आत्माना आश्रये
पोताथी ज थाय छे.–आवा स्वाश्रित सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे आत्मा पोते ज
पोताने तारे छे. जेणे आवो मार्ग जाण्यो तेणे तरवानो मार्ग जाण्यो, तेणे भगवानना
उपदेशनो शुद्धसार जाण्यो, ते पोते पोतानो तारणहार थयो.
आ रीते आत्मा पोते विमलस्वरूप छे. तेना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
विमल परिणाम ज मुक्तिनुं कारण छे, बीजुं कोई मुक्तिनुं कारण नथी. आवो मोक्षमार्ग
भगवाने कह्यो छे. अने आवुं कहेनारा देव–गुरु–धर्म ज पूज्य छे. सर्व देवोमां उत्तम
(एटले के साचा) श्री अरिहंतदेव ते ज देव छे, गुरुओमां साची द्रष्टिवंत निर्ग्रंथसाधु ते
ज परमगुरु छे; धर्मोमां सर्वज्ञदेवे कहेलो परम वीतरागभावरूप धर्म ते ज धर्म छे;
विजेताओमां उत्तम जिन परम शुद्ध एवा अर्हंत अने सिद्ध परमात्मा छे. मोक्षार्थी
जीवोने आवा उत्तम देव–गुरु–धर्म ए ज पूजनीय छे. भेदज्ञानपूर्वक ज एनी साची
ओळखाण थाय छे; ने त्यारे ज शुद्ध सम्यक्त्व एटले के निश्चय सम्यक्त्व थाय छे.
निश्चय सम्यग्दर्शनने ज शुद्ध सम्यक्त्व तरीके वर्णव्युं छे. ते चोथा गुणस्थानथी होय छे.
आत्मा रागद्वेषरूप भावकर्मोथी भिन्न द्रव्यकर्मोथी भिन्न अने शरीरादि नोकर्मोथी
पण भिन्न छे; आत्माने आवा शुद्धस्वरूपे देखवो–अनुभववो तेने भगवाने शुद्धसम्यक्त्व