Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९प आत्मधर्म : ३प :
कह्युं छे, ने ते मोक्षनो मार्ग छे; वच्चे राग आवे ते बंधनो मार्ग छे, ते मोक्षनो मार्ग नथी.
पोताना शुद्धस्वभावना भान वडे शरीरमद वगेरेनो त्याग थई जाय छे; केमके देह ज हुं
नथी पछी मद कोनो? आ रीते शुद्धआत्माने श्रद्धामां लाववो ते परमशुद्ध सम्यक्त्व छे; ते ज
निर्विकल्प सम्यग्दर्शन अथवा निश्चय सम्यग्दर्शन छे. आवा सम्यग्दर्शननो उपदेश ते शुद्ध
उपदेश छे; ते ज सार छे, अने ते ज भव्यजीवोने माटे ‘ईष्ट–उपदेश’ छे. आनाथी विरूद्ध
(पराश्रयथी–रागथी लाभ मनावनारो) उपदेश ते ईष्ट नथी, सार नथी, शुद्ध नथी, पण ते
तो अनिष्ट असार अशुद्ध अने जीवनुं बूरुं करनार छे.
श्री पूज्यपादस्वामीए ‘ईष्टोपदेश’ मां जीवना हितनो उपदेश आपतां कह्युं छे
के–बधा निमित्तो धर्मास्तिकायवत् छे एटले के अकिंचित्कर छे–(‘गतेः
धर्मास्तिकायवत्’] कोई बीजाने ज्ञानी के अज्ञानी करी शकतुं नथी, आत्मा पोते ज
पोताने ज्ञानी के अज्ञानी स्वयं करे छे; स्वाश्रयनो आवो ईष्ट (हितकर) उपदेश समजे
तो ज देव–गुरुनी साची ओळखाण थाय, वीतरागी देव–गुरुए शुं कह्युं–तेनी ओळखाण
वगर देव–गुरुनी शुद्धश्रद्धा केम रहे? ने एवी श्रद्धा–ओळखाण वगरनी एकली
शुभरागनी क्रियाओ वडे जीवने धर्मनो कांई लाभ थाय नहि. शुभभाव हो पण ते कांई
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं कारण नथी, ते कांई भगवानना उपदेशनो सार नथी, ते
ईष्ट नथी. ‘उपदेशनो शुद्धसार’ कहो के ‘ईष्ट–उपदेश’ कहो तेमां तो आत्माना
शुद्धस्वरूपनो अनुभव करवानुं ज कह्युं छे; राग–द्वेषनो क्षय करवानो भगवाननो उपदेश
छे, पण तेने राखवानो उपदेश नथी. आवो उपदेश ते शुद्धउपदेश छे. पुण्यवडे मोक्ष
थवानुं मनावे तो ते उपदेश भगवानना घरनो नथी, शुद्ध नथी, साचो नथी, पण जूठ्ठो
अज्ञानीनो उपदेश छे. रागने उपादेय समजे तेने साचो वैराग्य होतो नथी. रागनो
विषय पर छे, रागनो विषय स्व नथी; स्वाश्रये रागनी उत्पत्ति थाय नहि, माटे ते
परपर्याय छे, तेनी रुचि धर्मीने नथी. स्वना अनुभवमां राग रहेतो नथी. आवा
अनुभवनो उपदेश सर्वज्ञ भगवाने आप्यो छे. माटे श्रद्धाळु मुमुक्षुओए ते सर्वज्ञ–
अरिहंतपरमात्माने ज साचा आप्तदेव मानवा योग्य छे.
अनंत चतुष्टयधारक अरिहंतदेवनो महिमा अपार छे; तेओ अनंतानंत
पदार्थोनो परम गंभीर उपदेश आपे छे....अने निर्मळ अक्षयद्रष्टि प्राप्त करावे छे.
भगवाने केवळज्ञानवडे जे जाण्युं तेनो अनंतमो भाग ज वाणीमां आवे छे; छतां ते
वाणीमां अनंतानंत पदार्थोना स्वरूपनो उपदेश आव्यो छे. पण तेनो सार शुं? के
शुद्धात्मानो अनुभव करवो ते ज भगवानना सर्व उपदेशनो सार छे; ने तेनाथी ज